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सोम को समर्पित सरकार, शराब फैक्ट्री पर न्यौछावर सरकारी खजाना

सोम को समर्पित सरकार, शराब फैक्ट्री पर न्यौछावर सरकारी खजाना
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सोम को समर्पित सरकार
न्यायालय के आदेश के बावजूद करोड़ों दबाए बैठी है सोम डिस्टलरीज

ग्वालियर। म.प्र. औद्योगिक केन्द्र विकास निगम से करोड़ों का कर्ज लेकर प्रदेश की राजधानी में शराब कारोबार शुरू करने वाले अरोरा बंधुओं पर सरकार इतनी मेहरबान है कि उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद इनसे सरकारी राशि की वसूली नहीं कर रही है। खास बात यह है कि दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा तय किए गए आॅफिस लिक्वेडेटर द्वारा भी आज तक न तो फैक्ट्री के लेखा और संपत्ति संबंधी दस्तावेज अपने अधिपत्य में लिए हैं न ही शासकीय राशि की वसूली के लिए कोई कार्रवाई की है।
उल्लेखनीय है कि शराब फैक्ट्री सोम डिस्टलरीज एण्ड ब्रेवरीज लिमिटेड (एसडीबीएल) के संचालकों ने वर्ष 1999-2001 में म.प्र. स्टेट इंडस्ट्रीज डेबलपमेंट कार्पोरेशन (एमपीएसआईडीसी) से 12 करोड़, 13 लाख रुपये का कर्ज चार किश्तों में लिया था। कर्ज की सम्पूर्ण राशि 30 अक्टूबर 2004 तक ब्याज सहित चुकता करनी थी। निर्धारित समयावधि में राशि चुकता नहीं किए जाने पर एमपीएसआईडीसी द्वारा कम्पनी को नोटिस जारी किए गए। इसके बावजूद वसूली नहीं होने पर एमपीएसआईडीसी कर्ज की राशि की वसूली के लिए कम्पनी कोर्ट पहुंचा। कम्पनी कोर्ट ने 30 मई 2013 को आदेश पारित कर छह सप्ताह में ब्याज सहित सम्पूर्ण राशि वसूली के आदेश दिए। इस आदेश के विरुद्ध सोम डिस्टलरीज के संचालकों जगदीश अरोरा और अजय अरोरा ने दिल्ली उच्च न्यायालय की युगल खण्डपीठ में याचिका दायर की। याचिका अस्वीकार होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2013 में याचिका दायर की। जिसकी सुनवाई वर्ष 2016 में हुई। सोम और एमपीएसआरडीसी दोनों ही पक्षों को सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने सोम की याचिका अस्वीकार कर दी। दोनों ही न्यायालयों ने कम्पनी कोर्ट के आदेश को यथावत रखते हुए शीघ्र ब्याज सहित वसूली का आदेश दिया।
यह था कम्पनी कोर्ट दिल्ली का आदेश
कम्पनी कोर्ट दिल्ली ने 30 मार्च 2013 को आदेश जारी कर सोम डिस्टलर्स एण्ड ब्रेवरीज लिमिटेड के संचालकों को 6 सप्ताह (42 दिन) में सम्पूर्ण कर्ज की राशि व्याज सहित जमा करने के निर्देश दिए। कम्पनी कोर्ट ने 3 मई 2013 को प्रोवेजनल लिक्वेडेटर नियुक्त किया। कम्पनी कोर्ट द्वारा निर्धारित समयावधि में राशि जमा नहीं किए जाने की स्थिति में न्यायालय द्वारा नियुक्त आॅफीशियल लिक्वेडेटर को कम्पनी राजसात कर वसूली की कार्रवाई करनी थी। लेकिन लिक्वेडेटर द्वारा तुरंत कम्पनी की संपत्तियां और लेखा दस्तावेज आदि आधिपत्य में नहीं लिए। इस दौरान कम्पनी कोर्ट के आदेश के विरुद्ध कम्पनी संचालकों ने दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में भी याचिका दायर की, जो दोनों ही न्यायालयों से अस्वीकृत हो गर्इं।
लिक्वेडेटर ने आधिपत्य में नहीं ली संपत्तियां
कम्पनी न्यायालय के आदेश के विरुद्ध सोम डिस्टलरीज के संचालकों ने दिल्ली उच्च न्यायालय की युगल पीठ में याचिका दायर की। इस याचिका को युगल पीठ ने 29 मई 2013 को अस्वीकार करते हुए, कम्पनी न्यायालय के आदेश को यथावत मानते हुए, कम्पनी से तुरंत राशि वसूली के निर्देश दिए। उच्च न्यायालय ने आॅफीसियल लिक्वेडेटर नियुक्त कर आदेश दिया कि वह कम्पनी की सम्पूर्ण संपत्ति एवं लेखा संबंधी दस्तावेज अपने आधिपत्य में ले। अगर सात सप्ताह में राशि सोम डिस्टलरीज के संचालकों द्वारा जमा नहीं की जाती है तो कम्पनी की सम्पूर्ण संपत्तियां राजसात कर इसकी नीलामी से कर्ज की राशि की ब्याज सहित वसूली की जाए। कम्पनी संचालकों को भी आदेशित किया कि वह 21 दिन में अपनी संपत्तियों से संबंधित समस्त दस्तावेज, लेखा आदि लिक्वेडेटर को सौंपें। उच्च न्यायालय के इस आदेश के विरुद्ध कम्पनी संचालकों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की। उच्चतम न्यायालय ने भी 26 सितम्बर 2016 को सोम डिस्टलरीज के संचालकों की याचिका को अस्वीकार कर कम्पनी न्यायालय के आदेश को यथावत माना। इसके बावजूद लिक्वेडेटर ने अभी तक कम्पनी से राशि वसूली की कार्रवाई नहीं की है। न ही सोम डिस्टलरीज के संचालकों ने कम्पनी की संपत्ति और लेखा संबंधी दस्तावेज लिक्वेडेटर को सौंपे हैं।
इनका कहना है
सोम डिस्टलरीज से वसूली के लिए अधिकारियों और न्यायालय द्वारा नियुक्त लिक्वेडेटर द्वारा कार्रवाई क्यों नहीं की गई। हम पता करते हैं, इस मामले में क्या स्थिति है। नियमानुसार शीघ्र कार्रवाई कराएंगे।
राजेन्द्र शुक्ल
उद्योग मंत्री म.प्र. शासन
‘मैं अभी भी बैठक में हूँ, आपका विषय क्या है आप मुझे एसएमएस कर बताएं। वैसे विषय क्या है आपका?’(सोम डिस्टलरीज शब्द सुनते ही फोन काट दिया। संदेश वॉट्सअप के माध्यम से भेजा गया, जिसका जवाब नहीं दिया गया)
डी.पी.आहूजा
प्रबंध निदेशक एमपीएसआईडीसी म.प्र.
‘यह मामला मेरे संज्ञान में नहीं है। जब लिक्वेडेटर नियुक्त हो चुके हैं, तो उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह वसूली कराएं। उद्योग विभाग ने न तो हमें किसी भी तरह की सूचना दी गई है, न ही कार्रवाई के लिए लिखा गया है। इस कारण सोम डिस्टलरीज में शराब निर्माण निरंतर जारी है। ’
अरुण कोचर
आबकारी आयुक्त म.प्र.

Updated : 3 Jun 2017 12:00 AM GMT
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