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जदयू और राजद गठबंधन की अधखुली गांठें

बिहार में महागठबंधन का क्या होगा? यह सवाल राजनीति में इन दिनों सबसे ज्यादा उठाया जा रहा है। यह स्वाभाविक भी है और इस प्रश्न के उठने के ठोस आधार हैं। हालांकि दो जुलाई को पटना में आयोजित जदयू प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि वे भाजपा के साथ नहीं जा रहे हैं और इस तरह का कयास गलत है। साथ ही उन्होंने अपने साथी नेताओं को भी राजद या गठबंधन के बारे में बयान देते समय संयम बरतने की सलाह दी। जदयू में नीतीश के शब्द अंतिम होते हैं, किंतु क्या इतना कह देने भर से यह मान लिया जाए कि वाकई गठबंधन में सबकुछ ठीकठाक है और यह अपनी आयु पूरी करेगा? इसी कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश ने कांग्रेस और गठबंधन को लेकर कुछ बातें कही जो कहीं ज्यादा मायने रखती हैं। उन्होंने कहा कि हम आंख मूंदकर किसी के पिछलग्गू नहीं बनेंगे, जो होना होगा, वह होकर रहेगा। हमारा एक सिद्धांत है, हमारा सिद्धांत अटल है। कांग्रेस पर उनका वार कहीं ज्यादा तीखा था। उन्होंने कहा कि हमारे सिद्धांत नहीं बदले, उनके (कांग्रेस के) सिद्धांत बदल गए हैं। लोहियाजी ने कांग्रेस को सरकारी गांधीवादी कहा था जो गांधीवादी नियमों का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए करती है। ध्यान रखिए, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने नीतीश पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि हंसना उनका काम है, हमारा नहीं। नीतीश ने अपने राज्य की दलित नेता को हराने की पहले ही घोषणा कर दी। आजाद ने कहा कि जिनका एक सिद्धांत होता है, वे एक सिद्धांत पर रहते हैं।जिनके कई सिद्धांत होते हैं,वे कई सिद्धांत पर चलते हैं। यानी उनके अनुसार नीतीश कुमार एक विचारधारा वाले नेता नहीं है, बल्कि वे कई विचारधाराओं में यकीन रखकर अलग निर्णय लेते हैं। दरअसल, नीतीश द्वारा राष्ट्रपति चुनाव में राजग उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन करने के कारण कांग्रेस और राजद, गठबंधन की दोनों पार्टियां बिफरी हुई हैं।

कार्यकारिणी में नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि हमने असम एवं उत्तरप्रदेश में गठबंधन के प्रयास किए, लेकिन ये लोग ही नहीं माने। हमारा प्रयास सफल नहीं रहा। वास्तव में जदयू ने दोनों राज्यों में कांग्रेस के साथ बिहार की तर्ज पर एक गठबंधन की कोशिश की थी, लेकिन कांग्रेस ने इसे नकार दिया। उत्तरप्रदेश में तो नीतीश कुमार ने चुनाव के पूर्व काफी सभाएं भी की थीं, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें भाव नहीं दिया। इसकी खीज उनके मन में थी जो कांग्रेसियों द्वारा राष्ट्रपति चुनाव में उनके मत की आलोचना करने के बाद बाहर आ गई है। इसका बाहर आना ही यह साबित करता है कि गठबंधन के अंदर अंतर्विरोध काफी पहले से हैं जो राष्ट्रपति चुनाव के समय फूटकर निकल रहे हैं। नीतीश कुमार ने यह भी साफ कर दिया कि जिस दिन रामनाथ कोविंद के नाम का एलान हुआ, हमने अपने फैसले से राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव एवं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अवगत करा दिया था। इसका अर्थ यह हुआ कि राजद और कांग्रेस के नेता नीतीश पर झूठे आरोप लगा रहे हैं। सोनिया और लालू यह साफ करें कि नीतीश ने उन्हें अपना फैसला बताया था या नहीं? अगर बता दिया था तो फिर इन्होंंने यह कैसे मान लिया कि अगर ये मीरा कुमार को अपना उम्मीदवार बना देंगे तो अपना फैसला बदल लेंगे। नीतीश अपने रुख को लेकर कितने कठोर हैं, इसका प्रमाण लालू प्रसाद यादव को उनके द्वारा दिए गए जवाब से मिलता है। लालू यादव ने कहा कि नीतीश ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि कर लेने दीजिए, ऐतिहासिक भूल यानी आपके कहने से हम अपना फैसला नहीं बदलने वाले। कम से कम तत्काल इस स्थिति को किसी गठबंधन के सामान्य होने तथा उसके स्थाई होने का प्रमाण तो नहीं माना जा सकता। आप इस बीच राजद और जदयू नेताओं के अलग-अलग बयानों को देख लीजिए तो ऐसा लगेगा कि यह गठबंधन के साथियों का नहीं, धुर विरोधी दलों के नेताओं का बयान है। राजद के एक विधायक ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसे नीतीश ने ठगा नहीं। यह बयान मीडिया की सुर्खियां बना।

22 जून को ही राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि सबसे पहले नीतीश कुमार ने ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से मिलकर सेक्यूलर दलों के संयुक्त फैसले से राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार उतारने की बात कही थी, इसके बाद वे पलट गए। उन्होंने यह भी कहा कि जदयू अलग निर्णय लेकर विपक्षी एकता को कमजोर करने की कोशिश करता है, जिससे लोगों में गलत संदेश जाता है। उन्होंने कहा कि नीतीश देशभर के मालिक हैं क्या? राजद के प्रयास से सेक्यूलर दल एकजुट होंगे और एक राष्ट्रीय विकल्प तैयार होगा। आप सोचिए, राजद का इतना बड़ा नेता अगर नीतीश कुमार पर ऐसी टिप्पणियां कर रहा है तो क्या इसे गठबंधन के सामान्य होने का प्रमाण मान लिया जाए? वे तो यही कह रहे हैं कि जदयू के अलग रहते हुए भी राजद विपक्षी एकता खड़ा करेगा। यही नहीं, राजद के विधायक भाई वीरेन्द्र ने तो यहां तक कह दिया कि नीतीश कुमार महागठबंधन को ठेंगा दिखा रहे हैं और उनका यह फैसला राजद और कांग्रेस के साथ धोखा है। उन्होंने कहा, 'नीतीश कुमार को अगर भाजपा से दोस्ती निभानी है तो खुलकर कहें। हमें क्यों धोखा दे रहे हैं? अब जरा दूसरे पक्ष को देखिए। जिस दिन पटना में जदयू की कार्यकारिणी की बैठक थी, उस दिन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक ने बयान दे दिया कि 27 अगस्त को राजद जो रैली कर रहा है उसमें उनकी पार्टी हिस्सा नहीं लेगी। अगर जदयू के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को न्योता मिलता है तब वे व्यक्तिगत स्तर पर उसमें उपस्थित होने पर फैसला लेंगे। कोई महासचिव यूं ही ऐसा बयान नहीं देता। श्याम रजक वैसे भी नीतीश कुमार के करीबी हैं। नीतीश ही उनको पार्टी में लाए थे। आप देखें, कार्यकारिणी में नीतीश का बयान यही है कि अगर उन्हें रैली में जाने का न्योता मिलता है तो वे जरूर जाएंगे। इस बयान से किसी को गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने यह नहीं कहा कि अगर न्योता मिलता है तो उनकी पार्टी उसमें शामिल होगी। एक तरह से यह लालू द्वारा आयोजित रैली से किनारा करना ही है। ध्यान रखिए, राजद की रैली का लक्ष्य 2019 में भाजपा नेतृत्व वाले राजग के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करना है। उस रैली का व्यापक प्रचार हो रहा है और राजद के पदाधिकारी अभी से यह कह रहे है कि उसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती जैसे नेता हिस्सा लेंगे।

पता नहीं, इसमें से कितने नेता हिस्सा लेंगे, लेकिन इस रैली की व्यापक पैमाने पर तैयारी चल रही है। यहां इसका उल्लेख करने का तात्पर्य यह बताना है कि लालू जिस रैली को 2019 में भाजपा एवं उसके सहयोगियों के खिलाफ एकजुटता के प्रमाण के रूप में पेश करना चाहते हैं, बिहार में उनका साथी जदयू पार्टी के तौर पर उसमें भाग नहीं लेगा। यह बहुत बड़ी बात है। इसके राजनीतिक निहितार्थ तो निकाले ही जाएंगे। क्या जदयू धीरे-धीरे राजद एवं कांग्रेस से किनारा कर रहा है? नीतीश कुमार एवं कोई जदयू का नेता ऐसा नहीं कह सकता। फिर भी उनके आचरण, उनके बयान, हाव-भाव तथा निजी बातचीत से तो कुछ साफ संकेत मिलते ही हैं। आप देख लीजिए, 30 जून की आधी रात को संसद के केंद्रीय कक्ष में जीएसटी के शुभारंभ कार्यक्रम में नीतीश ने अपने प्रतिनिधियों को भेजा था, जबकि महागठबंधन के सहयोगियों राजद और कांग्रेस ने इसका बहिष्कार किया था। 29 जून को लालू यादव के बेटे और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर अपने कार्यक्रम 'दिल की बात में बिना नाम लिए नीतीश कुमार को अवसरवादी और स्वार्थी कह दिया। प्रधानमंत्री मोदी के रेडियो संबोधन 'मन की बात की तर्ज पर तेजस्वी ने 'दिल की बात कार्यक्रम शुरू किया है। इसमें तेजस्वी ने कहा कि अपने अवसरवादी रवैये से हम छोटे-मोटे लाभ हासिल कर सकते हैं। सरकारें बना सकते हैं और गिरा सकते है।

Updated : 17 July 2017 12:00 AM GMT
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