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राहुल के प्रचार से कतरा रही कांग्रेस

राहुल के प्रचार से कतरा रही कांग्रेस
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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए प्रवास करने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं के बीच राहुल गांधी के दौरों के प्रति किसी भी प्रकार का कोई उत्साह दिखाई नहीं दे रहा। इसके पीछे स्थानीय कांगे्रसियों के कई कारण हो सकते हैं। एक कारण तो यही निकाला जा रहा है कि राहुल गांधी ने जब से कांग्रेस की कमान संभाली है, तब से कांग्रेस ने कोई प्रभावकारी उपलब्धि हासिल नहीं की है। यह बात सही है कि कांग्रेस ने उपचुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन उनके खाते में हार भी जुड़ी हैं। विरासती पृष्ठभूमि से कांग्रेस में राजनीति के शिखर पर पहुंचने वाले राहुल गांधी की बातों पर ध्यान दिया जाए तो कई लोगों को लगता है कि राहुल में अभी बचपना भरा हुआ है। शायद यही एक मात्र कारण हो सकता है कि राहुल गांधी के कर्नाटक दौरे को कई कांग्रेस नेता गंभीरता से नहीं ले रहे। या फिर यह भी लगता है कि स्थानीय कांग्रेस के नेताओं को यह साफ दिख रहा हो कि अब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार नहीं बनने वाली, इसलिए ही राहुल गांधी के कार्यक्रमों में कांग्रेस नेता रुचि नहीं ले रहे हैं। कर्नाटक के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और बिंदूर विधायक गोपाल पुजारी ने भी कथित तौर पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के चुनावी प्रचार में सहयोग करने में असमर्थता जाहिर की है। उनका मानना है कि इसकी वजह से उन्हें वोटों का नुकसान हो सकता है। इससे यह सवाल उठता है कि कांग्रेस के नेता राहुल को इतना कमजोर मानते हैं तो फिर उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे पद पर पदासीन करना कहां का न्याय है।

वैसे राहुल के नेतृत्व को लेकर कांगे्रस में भी कई बार आवाजें उठ चुकी हैं, लेकिन उन पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के रुप में लम्बे समय से राजनीति करने वाले नेताओं के लिए अब संभावनाओं के दरवाजे बंद होते जा रहे हैं। इस बात की आशंका पहले भी जयराम रमेश जैसे नेता कर चुके हैं। जिसमें उन्होंने कहा था कि अब कांगे्रस में 60 से ऊपर के नेताओं के दिन समाप्त हो चुके हैं। वरिष्ठ नेताओं की अवहेलना के बाद ऐसा लगने लगा है कि कांगे्रस अपनी जमीन खोती जा रही है। गुजरात में बहुत अधिक परिश्रम करने के बाद भी कांग्रेस को सत्ता नहीं मिल सकी, जो राहुल गांधी की असफलता ही कही जाएगी, लेकिन कांगे्रस में राहुल गांधी को ऐसा प्रचारित किया गया कि राहुल के कारण गुजरात का चुनाव जीत लिया हो। अगर हारना ही जीत है तो हार को क्या कहा जाएगा। गुजरात की वास्तविकता यही है कि वहां हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी को ही पूरी सफलता मिली है, इन दोनों की वजह से ही कांगे्रस को इज्जत बचाने लायक सीटें मिली है अन्यथा राहुल गांधी बुरी तरह से पराजित होते। शायद इसी वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस के नेताओं द्वारा राहुल गांधी के प्रचार अभियान में रुचि नहीं ली जा रही है। यह बात सही है कि किसी भी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता अपने नेतृत्व के प्रति अटूट श्रद्धा रखता है और उसी की सक्रियता से कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ता है, लेकिन कांगे्रस में उलटा ही हो रहा है, कर्नाटक में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ने के बजाय कमजोर ही हो रहा है, ऐसे में कर्नाटक में कांग्रेस कौन सी राह पर जाएगी, यह भविष्य ही बता पाएगा।

Updated : 20 March 2018 12:00 AM GMT
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