ध्यानचंद को भारत रत्न से नवाजा जाए :हॉकी इंडिया

नई दिल्ली

दद्दा ध्यानचंद की हॉकी कलाकारी पर भारत को गर्व है। भारतीय हॉकी भले ही अब अपना वजूद तलाशने के लिए जूझ रही हो, लेकिन ध्यानचंद का जादू दुनिया हमेशा याद रखेगी। ध्यानचंद को 1956 में पद्मभूषण से नवाजा जा चुका है। जिस तरह सर डॉन ब्रैडमैन क्रिकेट के और पेले फुटबॉल के पर्याय माने जाते हैं हॉकी में वही मुकाम ध्यानचंद को हासिल है।

हॉकी इंडिया ने सरकार से ध्यानचंद को भारत-रत्न से नवाजे जाने की मांग की है। हॉकी में ध्यानचंद का योगदान बेमिसाल है।हॉकी इंडिया ने खेल मंत्री अजय माकन को पत्र लिख कर कहा, ' नियमों में बदलाव से खिलाडि़यों के लिए भी सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत-रत्न का रास्ता खुलने का हम स्वागत करते हैं। स्वर्गीय मेजर ध्यानचंद को दुनिया भर में सर्वकालीन महान हॉकी खिलाड़ी माना जाता है। वह खेलों में संभवत: अकेले ऐसे खिलाड़ी हैं, जिनके नाम बतौर हॉकी खिलाड़ी कई ऐसे किस्से हैं जो किवदंतियां बन चुके हैं। ध्यानचंद की उपलब्धियों
के मद्देनजर उनसे बेहतर कोई और भारत-रत्न से नवाजे जाने का हकदार नहीं है। हॉकी इंडिया को उम्मीद है कि सरकार ध्यानचंद को भारत-रत्न से नवाजेगी। '

दद्दा ध्यानचंद को भारत को आजादी से पहले 1928 (एम्सर्टडम ) , 1932(लॉस एंजेल्स) और 1936 (बर्लिन) -लगातार तीन ओलिंपिक खेलों में हॉकी का गोल्ड मेडल जिताया। ध्यानचंद की बतौर खिलाड़ी उपलब्धियों का कोई दूसरा भारतीय सानी नहीं है। उनके जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन भारत के राष्ट्रपति जाने
माने मौजूदा और पूर्व खिलाडि़यों को राजीव गांधी खेल रत्न और अर्जुन अवॉर्ड तथा कोच
को द्रोणाचार्य और ध्यानचंद लाइफटाइम अवॉर्ड दिए जाने जाते हैं। ध्यानचंद के सम्मान
में ही 2002 में नैशनल स्टेडियम का नाम मेजर ध्यानचंद नैशनल स्टेडियम कर दिया गया
था।

यदि दूसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ होता तो ध्यानचंद संभवत: छह ओलिंपिक में भारत की नुमाइंदगी करते। उन्होंने अपना आखिरी ओलिंपिक 1936 में बर्लिन में खेला लेकिन हॉकी 1948 तक 42 बरस की उम्र तक खेले। उनका हॉकी करियर करीब तीन दशक लंबा रहा। इंटरनैशनल हॉकी में उन्हें एक हजार से ज्यादा गोल करने का गौरव हासिल है।

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