जयराम रमेश की घोषणा के बाद तय होगी आंदोलन की दिशा
ग्वालियर अक्टूबर । एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगोपाल पीव्ही ने कहा है कि मंगलवार को ग्वालियर से दिल्ली के लिए देश के वंचित समुदाय की जो पदयात्रा शुरू होने जा रही है उसकी दिशा पूरी तरह से केन्द्र सरकार की घोषणा पर निर्भर है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश सरकार की ओर से आज दोपहर जो घोषणा करेंगे उसके बाद एकता परिषद व उसके सहयोगी लगभग डेढ़ हजार संगठनों के प्रतिनिधि इस बात पर विचार करेंगे कि यह घोषणाएं किस हद तक पर्याप्त और पुख्ता हैं। अगर सरकार की घोषणा पर्याप्त नहीं मानी जाती तो बुधवार की सुबह हजारों पग दिल्ली की तरफ कूच करेंगे।उल्लेखनीय है कि जनसत्याग्रह २०१२ के तहत राष्ट्रीय समग्र भूमि सुधार कानून की मांग के साथ-साथ देश के हर नागरिक को आवास लायक भूमि, वनवासी क्षेत्र के लिए लागू वन अधिकार कानून व पेसा एक्ट को विशेष रूप से प्रभावशील बनाने, महिलाओं को कृषक का दर्जा देने, भूमि को जीवन जीने के साधन के रूप में विकसित करने की मांग विशेष रूप से शामिल हैं। जनसत्याग्रह २०१२ को कबर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया से जुड़े प्रतिनिधि भी ग्वालियर आए हैं।२ अक्टूबर के निर्धारित कार्यक्रम की जानकारी देते हुए राजगोपाल ने बताया कि केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश, सामाजिक अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक तथा आदिवासी विकास मंत्री किशोर चन्द्र देव सुबह १० बजे से दोपहर १ बजे तक ग्वालियर में जनसत्याग्रह २०१२ के नेतृत्वकर्ताओं से बातचीत करने के उपरांत मेला मैदान में उपस्थित सत्याग्रहियों के बीच महत्वपूर्ण घोषणाएं करेंगे। इसके उपरांत जनसत्याग्रह २०१२ का नेतृत्व आपस में विचार मंथन कर शाम सवा चार बजे अपनी आगामी रणनीति व आंदोलन की दिशा की घोषणा करेंगे।
श्री राजगोपाल ने बताया कि सरकार से जब बातचीत शुरू हुई तब यह तय हुआ कि कुछ कदम सरकार बढ़ाएगी और कुछ एकता परिषद व उसके सहयोगी संगठन। इसी के फलस्वरूप सरकार से बातचीत शुरू होने के बाद यह तय किया गया कि घोषणा के अनुसार एक लाख लोगों के बजाय ५० हजार लोग ही ग्वालियर में एकत्रित होंगे और आगरा तक पदयात्रा पहुंचते पहुंचते सरकार से वादा पूरा करने की उम्मीद रहेगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो यात्रा दिल्ली तक जाएगी और पंजाब सहित देश भर के बचे हुए सत्याग्रहियों को दिल्ली में एकत्रित होने की अपील की जाएगी।श्री राजगोपाल ने आज पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कहा कि सरकार यदि राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद को मजबूत बनाए और जमीन संबंधी मसले एकल खि$डकी प्रणाली से हल होने लगें तो तेजी से परिवर्तन संभव है। देश में व्याप्त भूख, पलायन और हिंसा के लिए सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है। जनसत्याग्रह जैसे आंदोलन सरकार को संवेदनशील बनाने के लिए चलाए जाते हैं। श्री राजगोपाल ने कहा कि सरकार को उद्योग के साथ-साथ कृषि को भी समान ढंग से प्रोत्साहन देना चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। कृषि पूरी तरह से उपेक्षित है और भूमि सुधार के बिना देश की कृषि की भी तरक्की नहीं हो सकती। देश में उद्योग दानवों की तरह ब$ढ रहे हैं जबकि उन्हें बहुत मानवीय होना चाहिए। नक्सल समस्या पर बोलते हुए राजगोपाल ने कहा आदिवासी क्षेत्र के लोग हिंसा के त्रिकोण में पिस रहे हैं। यह त्रिकोंण नक्सली, उद्योगपति और अद्र्घसैनिक बलों से मिलकर बनता है। उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन जैसे संसाधन जीवन जीने के लिए हैं न कि उद्योगी घरानों को मुनाफा दिलाने के लिए। सरकार को इस दिशा में संवेदनशील पहल करनी चाहिए, अन्यथा आगामी चुनाव में भूमि सुधार का मुद्दा एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा होगा।प्रधानमंत्री सहित केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के साथ चल रही बातचीत का जिक्र करते हुए श्री राजगोपाल ने बताया कि कई मुद्दों पर सहमति बनती नजर आ रही है। हमने देश में एक लैंडकूल विकसित करने की मांग की है। इसके तहत ऐसी सभी जमीन जिनका जनहित में कोई उपयोग नहीं हो रहा है उनका खेतिहर लोगों के हित में उपयोग सुनिश्चित करने की बात की गई है। लोगों को आवास योग्य जमीन देने के मसले पर सरकार सहमत है। आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से लागू पेसा व वनअधिकार कानून के उल्लंघन को रोकने के लिए सरकार से हर स्थिति में ओवरराइडिंग इफैक्ट देने की मांग की गई है जिससे कि कोई भी कानून आदिवासियों के हित में लागू इन कानूनों को निष्प्रभावी न कर सके।
अहिंसक आंदोलन ही सार्थक होते हैं
गांधीवादी तरीके से अहिंसक आंदोलनों की प्रासंगिकता पर बल देते हुए राजगोपाल ने कहा कि चुप्पी व हिंसा के बीच में जो सक्रिय अहिंसात्मक पहल है हम उसे बढ़ावा देना चाहते हैं। म्यामार की आन शान सूकी के संघर्ष व सफलता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अंतत: अहिंसक आंदोलन ही सार्थक होते हैं। हिंसा आधारित आंदोलन लिट्टे के प्रभाकरण और अफगानिस्तान के तालिबानी सरदार लादेन की तरह बिखर कर खत्म हो जाते हैं।श्री राजगोपाल ने बताया कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरूणाराय, के. राजू, घुमंतु जातियों पर भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट देने वाले बीआर रेंगे, जाने माने कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश, गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्षा राधा भट्ट, गुजरात से सांसद रहे आदिवासियों के नेता अमर सिंह चौधरी, आंध्रप्रदेश के दलित नेता विनय, तमिलनाडु के चाल्र्स निपोलस, कर्नाटक से ज्योति, महाराष्ट्र के ट्रेड यूनियन के लीडर सुभाष लोंगटे, यूरोपी पार्लियामेंट में ग्रीनपीस पार्टी की सदस्या करिमादली, अफ्रीका के सेनेगाल के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे मजीत, नेपाल में माओवादियों को लोकतंत्र की मुख्यधारा से जो$डने वाली शोभा बहन आदि महत्वपूर्ण लोग ग्वालियर में २ अक्टूबर को उपस्थित होकर जनसत्याग्रह २०१२ को अपना समर्थन देंगे।जनसत्याग्रह २०१२ के तहत ग्वालियर मेला मैदान में प्रतिदिन हजारों की तादात में लोग देश के कोने-कोने से एकत्रित हो रहे हैं। केन्द्रीय समन्वय समिति के सदस्य श्री अनिल गुप्ता के अनुसार अबतक ४० हजार लोग मेला मैदान में एकत्रित हो चुके हैं। २ अक्टूबर को ग्वालियर चंबल संभाग के १० हजार वंचित आदिवासी मेला मैदान पहुंचेंगे।
मेला मैदान इस समय देश भर से आए हुए वंचितों व आदिवासियों से भर गया हैं। यहां ऐसी दुर्लभ जनजातियों के लोग भी आए हैं जो विलुप्ती के कगार पर हैं। इन सभी वनवासी समुदाय की लोक संस्कृति की छटा शाम को देखने मिल रही हैं। एकता लोक कला मंच के गोकरण भाई मेला मैदान को लोकगीतों के जरिए अकर्षक स्वरूप दे रहे हैं।