जनमानस
राम हमारे प्राण हैं, भारत की पहचान हैं
जेठमलानी ने प्रभु राम के बारे में अपत्ति जनक टिप्पणी की, विनय कटियार ने भी उसका समर्थन किया। इसको लेकर इक्का-दुक्का टिप्पणी और विरोध को छोड़कर कोई उल्लेखनीय प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दी। यह देश की और उसके कर्णधार माने जाने वाले राजनैतिक दलों के लोगों की मानसिकता प्रकट करता है। ''राम तो ''राम हैं उन पर इन टिप्पणियों का कोई प्रभाव पडऩे वाला नहीं प्रभाव तो राम भक्तों और इस महान देश की संस्कृति पर पडऩा है। क्योंकि राम के बिना हम भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं कर सकते। कोई भी राष्ट्र जिन बिन्दुओं से मिलकर बनता हैं उसमें संस्कृति एक महत्वपूर्ण घटक हैं। संस्कृति पर प्रहार किसी भी प्रकार से उचित एवं क्षम्य नहीं होता। यह हम भारतीयों के लिए विचारणीय बिन्दु हैं। सूर्य की तरफ थूकने से सूर्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि वह थूक लौट कर थूकने वाले के मुंह के ऊपर ही गिरेगा। भगवान राम तो जगत पिता हैं, मां सीता जगत जननी हैं उनके अस्तित्व को नकारने से उन्हें कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। यदि कोई सांसारिक व्यक्ति अपने पिता पर प्रश्न चिन्ह लगा दे तो पिता तो पिता है उसे कोई अन्तर पडऩे वाला नहीं वह तो जैविक पिता है, तो हैं , लेकिन सवाल उस सन्तान की मानसिकता के बारे में उठता है जो अपने ही पिता के बारे में अनुचित टिप्पणी कर उनके अस्तित्व को ही नकार रहा है। जिस राम की माया का ऋषि-मुनि और वेद शा भी पार नहीं पा सके और वेदों ने जिसे नेति-नेति कहकर अपना माथा पीट लिया उस राम के बारे में टिप्पणी कर जेठमलानी ने अपनी हिन्दू माता के दूध को शर्मिंदा कर दिया है। हमारे महापुरुषों ने कहा है कि ''अन्याय करने वाले से अन्याय सहन करने वाला अधिक दोषीहोता है विचारणीय प्रश्न है कि जिनके निजी विचार ही यदि ऐसे हैं तो राम राज्य का नारा देने वाली पार्टी के वह कितने काम के हो सकते हैं? जेठमलानी जैसे व्यक्ति को जिसकी पूर्व की गतिविधियां भी अव्यवहारिक रही हों चाहें वह आतंकवादियों की वकालत का विषय हो या अन्य विवादास्पद विषय। उस व्यक्ति की डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी तथा पं दीनदयाल जी उपाध्याय जैसे महापुरुषों के खून पसीने से सिंचित पार्टी में आखिर क्या उपयोगिता हो सकती है? राजनीति को पेशा नहीं बनाया जाना चाहिए न ही इसे शौकिया करने की किसी को इजाजत होना चाहिए। हमको यदि अपना लक्ष्य प्राप्त करना है तो सिद्धान्त निष्ठ कार्यकर्ताओं के दम पर राजनीति करना चाहिए। अवसरवादी और सिद्धांत विहीन लोगों से भाजपा के देव दुर्लभ कार्यकर्ता मार्ग दर्शन प्राप्त नहीं कर सकते। मैं पूछना चाहता हूं भाजपा के नेतृत्व से क्या इन्हीं लोगों की दम पर आप भारत को ''परम वैभव के शिखर पर पहुंच सकते हो? क्या इन्हीं लोगों की दम पर आज राम राज्य को साकार कर सकते हो? क्या इन्हीं लोगों की दम पर आप गौहत्या पर प्रतिबंध लगा सकते हो? क्या इन्हीं लोगों की दम पर आप जम्मू-कश्मीर से धारा 370 से हटवा सकते हो? क्या इन्हीं लोगों की दम पर आप अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण करवा सकते हो? यदि नहीं तो फिर आखिर क्यों?
विप्लव वर्मा, ग्वालियर