जनमानस
सकारात्मक साहित्य की जरूरत
वर्तमान में इंटरनेट और इंटरटेनमेंट में उलझी युवा पीढ़ी अपना महत्वपूर्ण समय अकारण ही नष्ट कर रही है। पहले के युवा सकारात्मक चिंतन किया करते थे, आज तो चिंतन ही समाप्त हो गया है। साहित्य में युवाओं की दूरी बेहद बुरा संकेत है। दिनचर्या में मात्र मनोरंजन करना आज के युवाओं का सामान्य कार्य बन चुका है। अच्छे साहित्य को पढऩा उस पर चिंतन मनन करना आज की युवा पीढ़ी हेतु बोरियत भरा काम है। साहित्य से व्यक्तित्व का निर्माण कोई नई बात नहीं है। अच्छे साहित्य से जीवन में नई ऊर्जा, नई शक्ति और नई दिशा मिलती है। जीवन के किसी उतार-चढ़ाव में युवाओं के हताश और निराश होने के समाचार आए दिन देखने और पढऩे को मिलते हैं, जबकि सकारात्मक साहित्य से आत्मबल प्राप्त होता है जो विकट परिस्थितियों में भी एक महत्वपूर्ण संबल का कार्य करता है।
पंकज वाधवानी, इंदौर