छोटे दलों को समान पार्टी चिन्ह नहीं
नई दिल्ली। छोटे राजनीतिक दलों को प्रादेशिक दल की मान्यता और समान चिन्ह आवंटन के मंसूबों पर पानी फिर गया है। सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा में कम से कम दो सीटें और कुल मतदान का छह प्रतिशत मत प्राप्त करने पर ही मान्यता और समान चिन्ह देने के चुनाव आयोग के मानकों पर अपनी मुहर लगा दी है। कोर्ट ने चुनाव चिन्ह [आरक्षण व आवंटन] आदेश 1968 के प्रावधानों को सही ठहराते हुए उसे चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी हैं।
दक्षिण भारत की पार्टी डीएमडीके और प्रजा राज्यम एवं अन्य दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनाव चिन्ह आदेश 1968 के कुछ उपबंधों की वैधानिकता को चुनौती दी थी। कानून में ये उपबंध 1 दिसंबर, 2000 को अधिसूचना जारी कर जोड़े गए थे।
न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर एवं न्यायमूर्ति एसएस निज्जर ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा है कि कानून में चुनाव आयोग को मानक तय करने का अधिकार प्राप्त है। उन मानकों को गलत नहीं ठहराया जा सकता। पीठ के तीसरे न्यायमूर्ति जे चमलेश्वर ने दो जजों के मत से असहमति जताई है। न्यायमूर्ति चमलेश्वर का कहना है कि चुनाव चिन्ह आवंटन आदेश के प्रावधान संविधान में मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। ये दो दलों के बीच भेद करते हैं।
इस मामले में डीएडीके की दलील थी कि उसने चुनाव में कुल वैध मतों का 8.33 फीसद प्राप्त किया था। यह तय मानकों से ज्यादा था। फिर भी चुनाव आयोग ने उसके पास विधान सभा की दो सीटें न होने के कारण प्रादेशिक पार्टी के रूप में मान्यता देने से इन्कार कर दिया।
पार्टी की ओर से दलील दी गई थी कि चुनाव आयोग के मानक पुराने दलों और नए दलों में भेद करते हैं। चुनाव आयोग ने पार्टी की दलीलों का पुरजोर विरोध किया।
राजनीतिक दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए पार्टी को अपने को साबित करना होगा और प्रदेश राजनीति में गंभीर खिलाड़ी होने की विश्वसनीयता स्थापित करनी होगी। अगर पार्टी ऐसा करने में सफल रहती है तो वह मान्यता प्राप्त दल होने के सभी लाभ पाने की अधिकारी होगी जिसमें एक समान पार्टी चिन्ह आवंटन शामिल है।
फैसले के मुख्य बिंद
-सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव चिन्ह आदेश, 1968 के प्रावधानों को सही ठहराया।
-कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज।
-चुनाव आयोग को मानक तय करने का अधिकार है।
-चुनाव आयोग द्वारा तय मानक गलत नहीं ठहराए जा सकते।