जनमानस
सौ सौ मूसे खाय बिल्ली हज को चली
राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी प्रणव दादा कई वर्षों तक सरकार में मंत्री रहे। अब जब वह राष्ट्रपति बनने की आशा में है तो उन्हें यह समझ आई है कि गठबंधन की सरकार होने के कारण सरकार आम जनता के हित में काम नहीं कर सकी। अगर गठबंधन के कारण सरकार अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर पा रही थी तो सरकार से अलग होने से उन्हें किसने रोका था, अगर जनता के हित में काम नहीं कर पा रहे थे तो उन्हें मंत्री पद से स्तीफा दे देना चाहिए था उनके सामने अटल जी का उदाहरण भी था जिन्होंने 13 दिन और 13 माह के बाद स्तीफा देना वेहतर समझा था, बजाए गठबंधन की मजबूरी के सामने हथियार डालने के। उनकी सरकार को गठबंधन के आगे झुकने की बजाए, स्तीफा दे देना चाहिए। उनके स्तीफा दे देने से राष्ट्र को नुकसान उतना नहीं होता जितना कि सरकार बनाए रखने के लिए घोटालों से हुआ है।
यह तो केवल बहाना है और उपरोक्त कहावत को चरितार्थ करने के समान है। गठबंधन की मजबूर सरकार में बने रहने से उससे बाहर आ जाना चाहिए था।
लालाराम, गांधीनगर