ज्योतिर्गमय
सब कुछ संभव है बस हौसला चाहिए
इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता। क्या नहीं पा सकता। अच्छा स्वास्थ्य, सम्मानजनक स्थिति और धन सम्पदा, प्रतिष्ठा, अच्छे संबंध, अच्छा परिवार, मित्र और सब कुछ पाया जा सकता है। बस हमारे मन में सब कुछ करने पाने की तीव्र इच्छा होनी चाहिए। संकल्पों में दृढ़ता चाहिए और उसे करने और पाने के लिए हर तरह के परिश्रम चाहिए। बिना मेहनत कुछ हासिल नहीं हो सकता। लोगों ने कैसे काम किए यात्राएं कीं, देश खोजे जबकि इतने साधन नहीं थे तब यह सब किया। आज तो हमारे पास साधनों की कोई कमी नहीं है। जब जो चाहिए उपलब्ध हो सकता है। हौसला क्या है उत्साहभरा साहस ही हौसला है। जब निपट मूर्ख महाकवि कालिदास बन सकता है। डरपोक शूरवीर बन सकता है। बस संकल्प और हौसला चाहिए। इन्सान ही सब कुछ करता आया है और पाता आया है। आज दुनिया आविष्कारों से भरी हुई है। हम कहां थे कहां पहुंचे हैं। इन्सान ने जो भी किया है, पाया है, तरक्की हुई है। सब हौसला निश्चय, आत्मविश्वास एवं सफलता के प्रति आश्वस्तता ही सब कुछ कराती है। जब हौसला उभरता है तो महासागर भी चुल्लू भर पानी जैसे लगता है। हौसले ने देश खोजें, पहाड़ों की चोटियों पर अपने झंडे गाड़े। माउंट एवरेस्ट और अन्य कई चोटियां फतह कीं। उन ऊंचाईयों तक पहुंचना ही उन्हें फतह करना था। कोलम्बस, वास्कोडिगामा, व्हेनसांग और न जाने कितने नाम हैं। इनमें पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। बड़े बुजुर्ग ऐसा कहते हैं कि किसी के स्वभाव या गुणों में कोई कमी है तो भगवान कुछ ऐसे गुण उसमें डाल देता है जिससे उस की कमी पूरी हो जाए। यही तो उसकी विचित्रता है। दुनिया के शास्त्र साहस या हौसले को पहला गुण मानते हैं इन्सान में। गीता में सबसे पहला गुण निर्भयता या अभय को ही बताया है। बाकी सब उसके पीछे हैं। गुणों की सरताज है हौसला, हिम्मत, साहस तो हर स्थिति में उसे बनाए रखें, सामने रखें और फिर आगे बढ़ें विजय निश्चित है। बस यही मेरा संदेश है।