जनमानस
'' स्त्री शक्ति है
यह शक्तिस्वरुपा है, वह चाहे बेटी हो बहन हो या माता उसकी अपनी शक्ति है, कभी वह कार्यरत। जब वह कार्यरत रहती है, तब वह एक तो निर्मिति करती है या संहार करती है। उसकी यह निर्माण, संवर्धन और संहार करने की शक्ति कैसे जाग्रत करें और उसको राष्ट्रकार्य में, समाज धारणा में और परिवार के संवर्धन में कैसे लगाए इसी के लिए यह शक्ति सम्मेलन का आयोजन और प्रयोजन है। तो सचेतन शक्ति है यदि अचेतन शक्ति के जैसे रहती है तो वह और कोई उपयोग में नियंत्रण में लाने का प्रयास एवं प्रयोग कर सकता है जिससे वह शक्ति भी पतित होती है और शक्ति को नियंत्रित करने वाले भी।स्वामी विवेकानन्द के अनुसार 'यदि उसको पुरुष ने दबाया इसलिए सर्वबंधन तोड़कर बाहर लाने का प्रयास करती है, तो शुरु में कितना भी अच्छा लगा हो उसको अंततोगत्वा परिणाम ी के दुखों का कारण ही रहा है। पश्चिम में भोग्या समझा गया इसलिए संघर्ष करते हुए वह ये सारे बंधन तोड़कर बाहर आई उसका परिणाम परिवार का बिखराव ी एकल अभिभावक के रूप में रह गई एवं असुरक्षित भी।
हम स्वयं की मुक्ति स्वच्छन्दता के लिए अपनों से कटकर जीने का प्रयास करते हैं तो वह संभव नहीं कारण सब एक दूसरे के पूरक हैं। यह सत्य ध्यान में रखना आवश्यक है।
डॉ. सुमन मिश्रा
राष्ट्रसंत-स्वामी विवेकानंद
हम स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती वर्ष मना रहे है। स्वामी विवेकानंद एक महानयुग द्रष्टा राष्ट्र संत थे उनके विचारों को आम आदमी तक पहुंचाना हम सभी का महत्वपूर्ण कर्तव्य बनता है। स्वामी जी के विचार युवाओं के लिए खास संदेश पूर्ण थे।उन्होंने कहा था ''युवाओं उठो और लक्ष्य पूर्ति तक रुको मत, बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के मेधावी बालक रहो। एक देवेन्द्र नाथ ठाकुर से भेंट होने पर पूछा था कि महात्मा जी आपने परमात्मा (भगवान) को देखा है। उन्होंने कहा बेटे मैंने नहीं देखा है। लेकिन तुम्हारे ललाट पर वह तेज देख रहा हूं। कि तुम परमात्मा को अवश्य देखोगे, भगवान से भेंट की तीव्र इच्छा शक्ति के चलते ही सम्पूर्ण भारत में संतमहात्मा, बुद्धि जीवी, राजे महाराजे, कलाकार सृजन धर्म व्यक्तियों के सम्पर्क में आए और एक दिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस से भेंट हो गई मिलने पर वही प्रश्न क्या? आपने भगवान को देखा है। परमहंस ने जवाब दिया देखा है। कैसे देखा है। जैसे में तुझे देख रहा हूं। चरणों में वंदनाकर वहीं बैठ गए। महान गुरु का सानिध्य पाकर स्वामी विवेकानंद हो गए। 1893 में आप अमेरिका के विश्व सर्वधर्म सम्मेलन में शामिल होने शिकागो पहुंचे लगभग साढ़े तीन साल तक विदेशों में भ्रमण कर भारतीय दर्शन का परचम लहराते रहे। लेकिन वहां रहकर वे देश और देशवासियों की दशा के लिए सदा बैचेन रहे। एक राष्ट्रसंत के विचारों का अनुसरण करने की देश को आवश्यकता है।
कुवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर
अश्लीलता बंद हो
आए दिन वाद -विवाद में जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनमें एक तथ्य यह रहा कि फिल्मों में परोसी जा रही अश्लीलता बंद की जाए। न सिर्फ फिल्मों में बल्कि टेलीविजन पर सुबह से शाम आते विज्ञापनों व नाटकों में इस कार्य को कई गुना अच्छे से किया जा रहा है। (जैसे एक्स के स्प्रे आदि विज्ञापन) विभिन्न परिवारों में एक टेलीविजन ही मात्र मनोरंजन का साधन है। जिसे सब साथ मिलकर मजे से देखते हैं। पर अब आप ही बताए क्या कोई परिवार में बच्चों के सामने, बड़े के साथ बैठकर ऐसे धारावाहिकों व विज्ञापनों को देख सकता है। अगर सुधार करना ही है तो छोटे से क्यों नहीं कर रहे हैं। सब अपना अपना दरवाजा साफ करेंगे तो गंदगी अपने आप ही साफ हो जाएगी।
शिवांगी चौहान, ग्वालियर