ज्योतिर्गमय
भक्ति और अंधविश्वास
एक गाड़ीवान अपने को हनुमान जी का बहुत बड़ा भक्त समझता था। वह रोज मंदिर जाता और वहां बैठकर जोर-जोर से हनुमान चालीसा का पाठ करता, ताकि हनुमान जी अपने कानों से सुन लें और यह जान लें कि भक्त जब इस तरह भक्ति कर रहा है तो अवश्य ही वह गहरा भक्तिभाव रखता होगा। एक दिन वह अपनी गाड़ी लेकर कहीं दूर के गांव जा रहा था। रास्ते में एक जगह भारी कीचड़ भरा हुआ था। उसमें गाड़ी के पहिए फंस गए।
बैल उसे खींच नहीं पा रहे थे। वह स्वयं कीचड़ में फंसना नहीं चाहता था। फिर गाड़ी बाहर कैसे निकाले। वह उसी में बैठकर जोर-जोर से हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा। वह इस आशा में था कि हनुमान जी आएं और गाड़ी खींचकर बाहर निकालें। पाठ करते हुए बहुत देर हो गई, पर हनुमान जी नहीं आए। गाड़ीवान झल्लाने लगा और बुरे-भले शब्द कहने लगा। एक किसान पास के खेत में हल जोत रहा था। उसने यह सब देखा तो बोला, मूर्ख! हनुमान जी ने पूरे पर्वत को उखाड़ लिया था। तू उनका भक्त बनता है तो कीचड़ में उतरकर पहिये को जोर क्यों नही लगाता ताकि धकेले जाने पर वे आगे बढ़ें। हनुमान जी समुद्र में कूद पड़े थे, तुमसे कीचड़ में भी नहीं उतरा जाता। उस अंधविश्वासी भक्त को झटका लगा। उसने अपनी गलती समझी। कीचड़ में उतरा। पहिये को जोर लगाया। गाड़ी आगे चली और कीचड़ से पार हो गई। गाड़ीवान समझ गया कि जो काम अपने पुरुषार्थ से हो सकता है उसके लिए देवता को क्यों पुकारा जाए।