ज्योतिर्गमय
मन के रूप
मन प्राणी के शरीर में वह निराकार भाग है, जो निरंतर चलता रहता है। मन हजारों वर्ष आगे-पीछे राजा से रंक तक अपनी पहुंच क्षण भर में बना लेता है। मनुष्य के मन के दो रूप हैं। एक है चेतन मन और दूसरा अचेतन मन। मन की शक्ति इन दोनों में ही समाहित रहती है। चेतन मन हमारी बौद्धिक प्रगति पर आधारित होता है। हमारे वे सभी कार्य जो सोच-समझकर किए जाते हैं, हमारी जाग्रत अवस्था में होते हैं। ये कार्य हमारी चेतना द्वारा होते हैं, जो चेतन मन के निर्देश से संचालित होती है। वहीं अचेतन मन चेतना का दास नहीं है, यह सर्वदा उन्मुक्त है। अचेतन मन इतना सक्षम होता है कि चेतना के निर्देश की प्रतीक्षा किए बगैर ही स्वाभाविक रूप से कर्म करता रहता है। वास्तव में अचेतन मन व्यक्ति के आधिपत्य से एक प्रकार से परे होता है। यहां तक कि कभी-कभी इसके कार्य हमारी इच्छा के विरुद्ध भी हो जाते हैं। यह अचेतन मन सोते-जागते प्रत्येक स्थिति में क्रियाशील रहता है। वास्तव में यह हमारी मूल-प्रवृत्तियों का ही संवाहक है। यह न कभी रुकता है और न थकता है। सच पूछा जाए तो अचेतन मन ही व्यक्ति की शक्ति का भंडार है।