ज्योतिर्गमय
यंत्र-तंत्र-मंत्र के मायने
शरीर एक यंत्र है और इस शरीर को कैसे संभालना है, यह तंत्र है। तंत्र माने तरीका-तरीका तंत्र शब्द से निकला है।
किस तरीके से आसन पूजा करना है, यह सब तंत्र में आता है। और मंत्र जिसके साथ मन जुड़ जाए। यह मंत्र हो गया. हरि ओम का ध्यान करते हैं, आप बैठे हैं और इस तरह आंख बंद करके प्रभु का ध्यान किया, उच्चारण किया। यह जो पूरा तरीका है, इसको तंत्र कहते हैं।
शरीर है यंत्र और हरि ओम मन लगाकर किया तो यह हो गया मंत्र। तो यंत्र, तंत्र, मंत्र तीनों शरीर में ही हैं परंतु इसे स्थूल रूप से अलग-अलग बना देते हैं। उसका भी रहस्य है। परंतु यह जो ज्ञान है शुद्ध रूप में उपलब्ध नहीं है। मंत्रों को भी उच्चरित करते हैं परंतु जहां भाव नहीं है, श्रद्धा नहीं है, भक्ति नहीं है तो उसका फल नहीं होता। यदि होता भी है तो बहुत कम होता है। जब भाव है, भक्ति है, तो मंत्र-तंत्र किसी काम का नहीं है। तो एक भाव से, एक ज्ञान से, एक ध्यान से इन सबको हम पार कर सकते हैं, छलांग लगा सकते हैं।
मुद्रा माने ढंग। यदि आप प्रसन्न मुद्रा में बैठे हैं प्रसन्नचित्त तो कहते हैं कि आपका ढंग बहुत शानदार है। चित्त की अवस्थाओं को हम मुद्रा के नाम से संबोधित करते हैं। चिन्मुद्रा में हम रहते हैं, इसका मतलब हमारा स्वरूप चैतन्य हो जाता है, पूरा शरीर चैतन्य हो जाता है। बच्चे आदि मुद्रा में पैदा होते हैं। गर्भ में भी इसी मुद्रा में थे। शुरू में म बांधकर आते हैं दुनिया में और खोलकर निकल जाते हैं. जाते समय हाथ खुला रहता है।
तो आदि मुद्रा में आये, फिर चिन्मुद्रा में लगाकर सोये, चिन्मय मुद्रा में खेले कूदे, सपने देखे, और फिर मेरुदंड मुद्रा लगायी। मेरुदंड मुद्रा लगाते ही रीढ़ की हड्डी को बल मिल जाता है। प्राण का संचार इस तरीके से होता है। कभी आपने रेडियो खोलकर देखा हो तो उसमें एक नक्शा दिखाई देता है। एक चित्र होता है। यह चित्र हम और आप देखें तो कुछ भी समझ में नहीं आएगा। इस नक्शे में तरंगों को घुमाने की एक विधि है। इसी तरह षड्कोण, त्रिकोण लगाकर उसमें ध्यान लगाओ, चिन्मुद्रा में बैठकर ध्यान लगाओ, इससे चेतना जागृत होती है।