जनमानस
जन्म स्थली नहीं, शरण स्थली
'कितना आश्चर्य लगता है कि जब देश में एक ओर घोटालेबाजों, भ्रष्टाचारियों तथा राजनीतिक चोर उचक्कों पर नकेल कसने के लिए लोकपाल बिल के विधेयक को पास करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। वहीं दूसरी ओर जमानत पर निकले चारा घोटाले के दुर्दान्त अपराधी लालू प्रसाद कांग्रेस के समर्थन में सुविख्यात विकास शिल्पी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लंगोट पहनकर राजनीतिक ताल ठोकने की बात कर रहे हैं। लालू जिस साहस और उत्साह से इस तरह की बातें कर रहे हैं यह उनके स्वयं या उनके स्वयं की पार्टी राजद की हो ही नहीं सकती। क्योंकि उनके अपने ही गृह प्रदेश में राजग की क्या स्थिति है यह जग जाहिर है। रही उनके स्वयं के ताकत की बात, तो जब उन्हें जेल ले जाया जा रहा था तो उनके चेहरे की असहायता ही उनकी ताकत की बात साफ-साफ बता रही थी।
आज हमारे देश का एक अपराधी नेता जिस तरह चिंघाड़ रहा है सच तो यह है कि इसके पीछे कोई अज्ञात शक्ति काम कर रही है। यह तो समय ही तय करेगा कि यह अज्ञात शक्ति किसकी शक्ति है।
लंगोट पहन कर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ताल ठोकने वाले लालू शायद यह भूल गए हैं कि उनका लंगोट तो अदालत में गिरवी रखा हुआ है। अदालत ने छह वर्षों के लिए उनके चुनाव लडऩे पर भी प्रतिबंध लगा रखा है। लालू जी जिस तरह जेल को भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली बताकर स्वयं को भगवान श्रीकृष्ण साबित करना चाह रहे हैं तो शायद उनको यह ज्ञात नहीं कि, जेल भगवान श्री कृष्ण की जन्म स्थली तो थी पर यह उनकी शरण स्थली कदापि नहीं थी। जेल अगर किसी की शरण स्थली है तो वह लालू जी की तरह ही दागी, भ्रष्टाचारी तथा घोटालेबाज अपराधियों के लिए ही है। लालू जी को यह नहीं भूलना चाहिए कि अदालत ने उन्हें बरी नहीं किया है, उन्हें 25-25 हजार रुपए के मुचलके पर जमानत दी गई है। आज नहीं तो कल उन्हें उसी भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली में वापस लौटना ही पड़ेगा।
प्रवीण प्रजापति, ग्वालियर