ज्योतिर्गमय
मनुष्य उसके कुल विचारों का योग है
वैसे तो मनुष्य हाड़ मांस का पुतला है। यह तो एक प्रक्रिया है कि जब वह पैदा होता है तब से उसको पोषण मिलता है और उसका शरीर विस्तार पाता है। एक दिन वह एक मांसल शरीर वाला युवक बन जाता है। यह प्रक्रिया तो सबके साथ होती है। प्रकृति ही सब करती है। कैसे खून बनता है, हड्डियां मजबूत होती हैं और अन्य इंद्रियां भी अपना-अपना काम सुचारू रूप से करती हैं तब उसे एक स्वस्थ आदमी की संज्ञा दी जाती है। शरीर तो मशीन की तरह काम करता ही है। बस उसकी देखभाल ठीक से हो। उसकी जरूरतें पूरी होती रहें, पर यही तो जीवन नहीं है। मनुष्य अन्य प्राणियों से थोड़ा अलग होता है। उसके पास एक अदद मन है जो सोचता है। और विचार स्वाभाविक प्रक्रिया के अंतर्गत बनते ही रहते हैं। विचारों की दो श्रेणियां है। एक सकारात्मक और दूसरी नकारात्मक। सकारात्मक विचार उसे ऊपर उठाते हैं उसे स्वस्थ रखते हैं। वह अपना एक स्थान बनाता है। उसके विचार सत्कार्य में परिणत होते हैं। अपना और लोगों का भला तथा तारीफ होती है। विचार ही कर्म में परिणत होते हैं। विचारों को कर्म में याने शुभ सत्कर्म में परिणत होना ही चाहिये वर्ना सिर्फ विचार करना और कुछ न कर पाना शक्ति का अपव्यय है। आप यदि कुछ नहीं कर सकते तो दुनिया को प्रेरित कीजिये पर कुछ होना चाहिये नहीं तो इस ईश्वरीय शक्ति का क्या लाभ। एक इंसान की शक्ति की कोई सीमा नहीं है। वह बहुत कुछ कर सकता है। लोगों ने किया है उन्होंने किसी की बाट नहीं देखी। अकेले चल पड़े और बहुत कुछ कर दिखाया। कहा भी है कि- हम अकेले ही चले थे जानिबे मंजिल की ओर, लोग आते गये और कारवां बनता गया। किसी का इंतजार मत करो बस आप चल पडिय़े, लोग जुड़ते जायेंगे। समान विचार रुचि वाले जुड़ जाते हैं पर शुरुआत तो किसी को करनी ही पड़ती ही है। रविन्द्रनाथ टैगोर राष्ट्रकवि ने भी एक नारा दिया था- एकला चलो रे। अकेले चलकर लोगों ने क्या-क्या नहीं कर दिखाया। यदि सबको एकत्रित करने के चक्कर में रहते तो कुछ नहीं कर पाते। दुनिया में आज जो प्रगति है यह अकेले चलकर ही लोगों ने की है। हम कहां थे और कहां पहुंच गये और न जाने कितना आगे जायेंगे। इसलिये कहा है कि- चरेवैति चरेवैति। मतलब चलते रहो। यदि सही दिशा में प्रयास होगा तो सफलता निश्चित है। कोई हमें रोक नहीं सकता। तो आइये हम संकल्प लें कि समय का सदुपयोग करेंगे। कुछ न कुछ रचनात्मक काम करते रहेंगे। मथते रहेंगे जीवन को तो कभी न कभी तो मक्खन ऊपर आयेगा ही। मथना और मंथन करना, चिंतन करना। और सारे नकारात्मक विचारों से तौबा कर लें। तब हम अच्छे इंसान बनेंगे और इस दुनिया को भी बेहतर बनायेंगे। बस, यही मेरा संदेश है।