उच्चतम न्यायालय ने वीरप्पन के सहयोगियों की मौत की सजा पर लगाई रोक
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने वीरप्पन के चार साथियों की फांसी पर फिलहाल रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा ही एक मामला कोर्ट की दूसरी बेंच के सामने लंबित है, इसलिए इस पर अगले आदेश तक रोक लगाई जाती है।
मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह मामले को लंबित रख रही है, क्योंकि दूसरी पीठ ने भी इस याचिका पर सुनवाई की है और उसने फैसले को सुरक्षित रखा है।
पीठ ने कहा, हमारे विचार में इस पर कार्यवाही तब तक स्थगित की जाती है, जब तक दूसरी पीठ इस मामले में अपना फैसला नहीं सुना देती, इसलिए हम मामले की सुनवाई छह महीने के लिए स्थगित करते हैं, ताकि दूसरी पीठ दूसरे लंबित मामले में अपना फैसला सुना सके।
इसने कहा, परिणामस्वरूप याचिकाकर्ताओं (वीरप्पन के सहयोगियों) को फांसी पर लटकाने से संबंधित 18 फरवरी का अंतरिम आदेश जारी रहेगा। पीठ में न्यायमूर्ति एआर दवे और विक्रमजीत सेन भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि याचिका सजायाफ्ताओं की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने से संबंधित है, जिन्होंने मौत की सजा में विलंब के आधार पर बदलाव की मांग की है।
पीठ ने कहा, हमने जब सुनवाई शुरू की, तो इसमें यह मुख्य सवाल शामिल रहा। हमारे संज्ञान में लाया गया कि इसी मुद्दे पर दूसरी रिट याचिकाओं पर दो न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई कर रही है।
वीरप्पन के बड़े भाई गणप्रकाश और उसके सहयोगी सिमोन, मिसीकर मदैया और बिलावेन्द्रन को 1993 में कर्नाटक के पलार में हुए विस्फोट के सिलसिले में 2004 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 13 फरवरी को उनकी दया याचिका खारिज कर दी थी। वर्तमान में वे कर्नाटक के बेलगांव की एक जेल में बंद हैं।
मैसूर में टाडा की एक अदालत ने 2001 में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे उच्चतम न्यायालय ने बढ़ाते हुए मौत की सजा कर दी थी। गिरोह का सरगना वीरप्पन अक्टूबर, 2004 में तमिलनाडु पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर दूसरी पीठ द्वारा रिट याचिका पर सुनवाई में 19 अप्रैल, 2012 को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
पीठ ने कहा कि अतिरिक्त सोलीसीटर जनरल हरेन रावल ने सूचित किया है कि देवेन्दर पाल सिंह भुल्लर और एमएन दास की रिट याचिकाओं पर विचार करते हुए दूसरी पीठ के पास इसी तरह के मामले में विचार करने का अवसर था, जिसमें दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित थी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मुद्दे पर चूंकि दूसरी पीठ ने सुनवाई की है और फैसला सुरक्षित रखा है, इसलिए संभावना है कि वीरप्पन के सहयोगियों की याचिकाओं पर सुनवाई वही पीठ करेगी।
इससे पहले वीरप्पन के इन साथियों की फांसी की दया याचिका को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद ये लोग सुप्रीम कोर्ट के पास गए थे। गणनप्रकाशम, सिमोन एंटोनियप्पा, मीसेकर मदैया तथा बिलावेंद्रन नाम के वीरप्पन के चार साथियों को 1993 में कर्नाटक के पोलार में बारूदी सुरंग के विस्फोट में 22 पुलिसकर्मियों और अन्य लोगों की मौत के सिलसिले में फांसी की सजा सुनाई गई थी।
दया याचिकाएं वर्ष 2004 में दाखिल की गई थीं। दोषियों की दलील है कि उनकी याचिका पर निर्णय बहुत देरी से आया है, इसलिए उन्हें फांसी पर नहीं लटकाया जाना चाहिए।