जनमानस
बिगड़ता पर्यावरण
पर्यावरण दिन प्रति दिन संतुलन खोता जा रहा है। हमारी भौतिक विलासिता पूर्ण दिनचर्या ने पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर दिया है। कई पशुपक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। कुछ खोने के कगार पर है। गिद्ध, बुलबुल, पहाड़ी मैना, गौरर्ईया, कौवा आदि जलदायनी देवी स्वरूपा हमारी पवित्र नदियां गंगा, जमुना, ब्रह्मपुत्र, शिप्रा गंदगी के कारण नाला बनती जा रही हैं। और सरकार प्रतिवर्ष पर्यावरण सुधार पर करोड़ों खर्च कर नतीजा शून्य ही रहता है। घांटी गांव क्षेत्र में सोनचिरैया अभ्यारण बनाया गया है। लाखों रुपए खर्च के बाद सोनचिरैया का दर्शन नहीं होता है। अलबत्ता नेताओं के घर सोने की चिडय़ां जरुर बन गए हैं।प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग रोकना चाहिए, आवश्यकता अनुसार अपने दैनिक जीवन में परिवर्तन लाकर हम पर्यावरण सुधार में अपना फर्ज अदाकर राष्ट्र एवं आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुधार सकते है। आइए हम पर्यावरण सहेजने का संकल्प ले देश को बचाने की सार्थक पहल करें।
कुंवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर
सौंदर्यकरण पर फिजूल खर्ची
नगर के सौंदर्यकरण पर लाखों रुपए खर्च किए जा रहे है पर ये निर्माण कार्य क्षण भंगुर साबित हुए है। जैसेकि रानी झांसी की छतरी पर फर्शी कार्य किया गया यह कार्य जगह जगह से उखाड़ गया है, पत्थर चटक गए है, इनका कारण यह रहा कि पत्थरों का पेटा एकतत्व नहीं बनाया जिससे थोड़ा सा चलने फिरने से ही यह सब चटक गए। जल बिहार की फर्शी को सौ साल से भी ज्यादा हो गए हैं। लेकिन अभी भी अच्छी हालत में है। दोनों जगहों की तुलना से यह स्पष्ट है कि सुंदरीकरण पर किया गया खर्चा फिजूल खर्च साबित हुआ है। यही हाल गुरुद्वारे से लेकर नदी गेट तक बनाए गए फुटपाथ की फर्शी का है। जयेन्द्र गंज की पुरानी सड़क चमक रही है लेकिन इन पर की गई मरम्मत उखड़ गई है। यही हाल थीम रोड़ का हो गया है। सुन्दरीकरण क्रीम पाउडर से नहीं बल्कि शरीर में खून बढ़ाने से होता है जैसा मनुष्यों का स्वास्थ है, वैसा ही सड़कों आदि का हो गया है।
लालाराम गांधीनगर