जनमानस
हाशिए पर साहित्य
वर्तमान समय में हम देखते हैं। मीडिया द्वारा साहित्य को हाशिए पर डाल दिया गया है। कार्पोरेट जगत, फिल्म राजनैतिक हश्तियों को आने वाली छींक की भी खबर बनती है। साहित्य गोष्ठी, सम्मेलन आदि की खबर अग्रणी रूप से तो लगती ही नहीं है। और लगेगी भी तो कहीं हाशिए पर पड़ी होगी, सन्नी लियोन और पूनम पाण्डे की कलर फोटोज के लिए पत्र-पत्रिकाओं में पर्याप्त जगह होती है। महादेवी वर्मा और निराला जी की कविताओं के लिए कही कोई जगह नहीं होती है। इसे वर्तमान समाज की विडम्बना ही कहा जाएगा, कहा जाता है साहित्य समाज का दर्पण होता है। कलम के द्वारा बड़ी-बड़ी क्रांतियां घटित हुई है। हमारी मीडिया शहर की पुस्तकालय की खबर तो बनाता है कि पुस्तकालय बदहाली पर आंसू बहाते है। परन्तु पाठकों के प्रश्न कॉलम का स्पेस खत्म कर, नेट की खबर संपादकीय पृष्ठ पर डाल रहे हैं। इसे क्या? हम महज ढकोसला नहीं कहेंगे, कि अखबार साहित्य के लिए कितना चिन्तातुर है।
कुवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर