उत्तराखंड त्रासदी गंगा से खिलवाड़ का परिणाम: निश्चलानंद

कवर्धा | जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने गंगा के साथ खिलवाड़ को उत्तराखंड में आई भीषण प्राकृतिक आपदा का मूल कारण बताया है। वह मानते हैं कि सनातन धर्म के मान बिंदुओं की जो उपेक्षा हुई है, विकास के नाम पर बड़े-बड़े बांध, सुरंग और नहर परियोजनाएं निर्मित की गई हैं, इन्हीं कारणों से हिमालय पर जलप्रलय आया है।
उन्होंने यहां कहा कि गौहत्या कर उसके मांस और रक्त को गंगा में प्रवाहित किया जाता है और इस प्रकार के कृत्य केंद्रीय व प्रांतीय शासनों की दिशाहीनता को दर्शाते हैं। यह त्रासदी उसी का परिणाम है। वहीं, आदित्य-वाहिनी के सदस्य शिव अग्रवाल ने कहा कि हिमालय में आई प्राकृतिक आपदा ईश्वरीय शक्ति के द्वारा यह संकेत है कि ईश्वर का अस्तित्व है, केंद्रीय व प्रांतीय शासन तंत्र को यह बात समझना चाहिए कि विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ न होने दे। उन्होंने कहा कि इस भयानक प्राकृतिक आपदा ने हजारों इंसान की आहूति ले ली और कोई बचा रहा तो वह है भगवान केदारनाथ का मंदिर। इसका सीधा संकेत सरकार को समझना चाहिए, अविभाजित उत्तर प्रदेश में उत्तराखंड क्षेत्र में भूस्खलन को देखते हुए निर्माण के नाम पर विस्फोटक पदार्थो का विस्फोट, पेड़ पौधों की कटाई एवं बड़े बांध परियोजनाओं पर प्रतिबंध था। इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
शिव अग्रवाल ने कहा कि राज्य अलग होने के उपरांत ये सब प्रतिबंध हटाए दिए गए। विकास के नाम पर केवल दोहन ही किया गया।
उन्होंने कहा कि प्रकृति से लगातार छेड़छाड़ के कारण आज इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा को सम्पूर्ण भारतवासी झेल रहे हैं, जिसके घर के परिजन उन स्थानों में फंसे हुए हैं या देहत्याग चुके हैं। उनके घर की क्या स्थिति है यह व्यथा बयान करना मुश्किल है।
अग्रवाल ने कहा कि सनातन धर्म के विशेष पर्वो पर सरकारों का निकम्मापन हमेशा देखने को मिलता है। हाल में ही उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में महाकुभ्भ का आयोजन हुआ था, जिसमें 10 फरवरी को मौनी अमावस्या पर्व के दिन लगभग तीन करोड़ से ज्यादा व्यक्तियों ने गंगा पर आस्था की डुबकी लगाई थी। मगर सरकार की ओर से उचित व्यवस्था नहीं की गई थी, जिस कारण भगदड़ में श्रद्धालुओं की जान गई थी। उन्होंने कहा कि हरियाणा में स्थित हथिनीकुंड बैराज से पांच दिन पूर्व 12 लाख क्यूबिक मीटर पानी छोड़ा गया। दो दिन पूर्व चार लाख क्यूबिक मीटर पानी छोड़ा गया, जिससे हरियाणा के सैकड़ों गांव जलमग्न हो गए। हजारों की संख्या में नागरिक बेघर हो गए। अग्रवाल ने कहा कि देश की राजधानी दिल्ली में यमुना उफान पर है और यह स्थिति केवल बांध परियोजना को सुरक्षित रखने के कारण हो रहा है। आज इंसान की जान से ज्यादा कीमती बांध परियोजनाओं का जीवन हो गया है। अगर ऐसा न होता तो सरकारें आवश्यकता के अनुरूप विशाल बांध का निर्माण न कराकर मानव जीवन के संरक्षण के बारे में चिंता करतीं।

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