जनमानस
सच्चाई कहां है?
व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में हम जिन बातों को बुरा मानते हैं, उन्हें बाद में स्वीकार भी कर लेते हैं। सोशल मीडिया से लोग भ्रमित भी होते हैं। अश्लीलता भी प्रसारित की जाती है। मीडिया की व्यवसायिकता और पेड न्यूज को गलत माना जाता है, लेकिन इन बुराइयों को दूर करने की बजाए हम इन्हें स्वीकार कर रहे हैं। पेड न्यूज की आलोचना होती है लेकिन अब तो सरकारी विज्ञापन भी पेड न्यूज की तरह प्रस्तुत किए जाते हैं। पाठकों के लिए यह समझना कठिन हो जाता है कि यह विज्ञापन है या समाचार है। चुनाव आयोग भी पेड न्यूज को गलत मानते हुए, इसे रोकने के लिए निगरानी रखता है, लेकिन यह सिलसिला कम होने की बजाए बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक दल अपनी बातों को मीडिया द्वारा लोगों के सामने विज्ञापन द्वारा प्रस्तुत करता है। चुनावी मौसम में मीडिया के माध्यम से लोगों को प्रभावित करने की कोशिश होती है। छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले के बारे में भी ऐसी बातें प्रस्तुत की जा रही है, जिसमें सच्चाई की बजाए राजनीति अधिक है।
विनोद वर्मा, इन्दौर