भारत को बनाना है वैभव संपन्न राष्ट्र : मोहन भागवत
पटना। गुरू पूर्णिमा उत्सव के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संघचालक डा. मोहन मधुकर भागवत ने पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में जनसमूह को संबोधित करते हुए संदेश दिया कि निष्पक्ष रहते हुए हमें वैभव संपन्न राष्ट्र बनाना है और यह काम देश के कर्णधारों को करना चाहिए और जो ऐसा नहीं कर रहे उन्हें बदल देना चाहिए।
उन्होनें कहा कि केवल राजनीतिक लड़ाई से देश सुखी संपन्न नहीं हो पायेगा। मात्र सत्ता बदलने से काम नहीं चलेगा। हमें समाज में परिवर्तन लाने पर ध्यान देना चाहिए। आज समाज के व्यक्तियों की गुणवत्ता व एकता बढ़ाने की आवश्यकता है। हिंदू संस्कृति ही अपने देश की एकता का आधार है। इसके विविधता में एकता देखने से ही शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है। उन्होनें देश के तमाम स्वयंसेवकों को आह्वावान करते हुए कहा कि समाज के हर दुख को दूर करने के लिए अपनी शक्ति लगा दो। उन्होंने आम लोगों को संघ में आने,इसे अंदर से देखने, परीक्षण करने का खुला आमंत्रण दिया और कहा कि तभी संघ की सच्चाई का पता लगेगा और आपका भ्रम दूर हो पाएगा।
उन्होंने कहा कि संघ केवल ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करता है जो समाज के सामान्य के बीच से असमान्य गुणों का निर्माण करता है। उन्होने कहा कि देश सबका है यहां के हिंदू,मुसलमान को लड़ाई लड़ने की जरूरत नहीं। मुसलमान भी हमारे ही है। किसी के पूर्वज बाहर से नहीं आये। सबके पूर्वज एक ही हैं यहां तक कि उनके डी.एन.ए. भी एक हैं। भारत में सबको अपनी पूजा पद्धति अपनाने की छूट है। पर हिन्दूत्व के आधार पर समाज को संगठित करने की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि हिन्दुत्व हिन्दुस्थान की पहचान है। हिन्दु के संगठन का काम संघ करता है। हिंदूत्व किसी जाति विशेष से संबंधित नहीं है। माध्यमों की निगाह संघ पर बारीकी से बनी रहती है। उन्होनें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार की चर्चा करते हुए कहा कि संघ की स्थापना के बाद वे परिस्थितियों पर चर्चा ही नहीं करते थे बल्कि उसका उपाय भी बताते थे। श्री भागवत ने कहा कि देश की परिस्थितियों के विषय में साकारात्मक और नाकारात्मक दो स्वर निकलते हैं। वर्तमान परिस्थिति की चर्चा करते हुए श्री भागवत ने कहा कि जो भारत आज से कुछ समय पहले महाशक्ति के रूपमे उभर रहा था, आज उसके महाशक्ति बनने पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है। जनमानस निराश होते जा रहें हैं। डा. भागवत ने कहा कि किसी भी देश को प्रतिष्ठित बनाने के लिए उसके पद्धति पर विचार करना आवश्यक है। हम इसके लिए विकसित राष्ट्र से भी प्रेरणा ले सकते हैं। अगर अच्छी सरकार, अच्छा नेता होगा तभी समाज अच्छा बनेगा। उन्होनें कहा कि आजादी के पूर्व भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। भारत की धाक केवल एशिया,यूरोप में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में थी। यहां सुख के साधन बड़ी मात्रा में उपलब्ध थे। आजादी के समय के क्रांतिकारी नेता देश को संकटमुक्त,समृद्ध बनाने के लिए समाज की विशिष्ट गुणवत्ता की अनिवार्यता पर एकमत थे। समाज में परिवर्तन लाने के लिए नायक की आवश्यकता है, जो संपूर्ण समाज से आत्मीय संबंध रखने वाला शील संपन्न हो। देश के हित में एक नायक का होना पर्याप्त नहीं है। नायक केवल आदर्शमात्र बन सकता है। श्री भागवत ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां प्राचीन समय से यह विचार चला आ रहा है कि भारत एक आविष्कार है। एकता का साक्षात्कार जीवन का सुख प्राप्त करनेवाला उपाय है। हिन्दुत्व अपनी देश की एकता का आधार है। विश्वपटल पर भारत ही एक ऐसा देश है जो विविधता में एकता की शिक्षा देता है। उन्होनें कहा कि संघ को नाम, कृति, प्रसिद्धि की चाह नहीं है। संघ चाहता है कि भारत अपने पैरों पर खड़ा होकर संबल संपन्न, बल संपन्न राष्ट्र बने। संघ के द्वारा इस वर्ष को स्वामी विवेकानंद शताब्दी समारोह वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इसके अंतर्गत वर्ष में भारत जागो दौर, गृह संपर्क अभियान, गुरू पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। गुरू पूर्णिमा के अवसर पर सुशील कुमार मोदी, गिरिराज सिंह, नंद किशोर यादव, किरण घई, अरूण सिंहा सहित भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थिति थे।