ज्योतिर्गमय
जन्माष्टमी का संदेश
आज भारत विदेशी गुलामी से मुक्त हो स्वतंत्रता की सांस ले रहा है। उसे अपने पुराने गौरव की खोज में लगना है तो उसे अपने अमर चरित्र नायक श्रीकृष्ण के द्वारा निरूपित कृष्ण नीति का पालन करना ही होगा जो अपने पशु-प्रेम, संगीत (बांसुरी वादन) नृत्य (रासलीला व कालिया दमन) मित्र भाव (सुदामा कथा) गीता प्रवचन व इस सबसे ऊपर भारतीय सीमा के खतरों को भांपते हुए द्वारिका की स्थापना व योग शाी व कुशल अ-शधारी (सुदर्शन चक्र) के स्वरूप में शाश्वत संदेश दे रहे हैं। उनका स्पष्ट संदेश है कि जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब मैं अवतार लेता हूं। आज भारत भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, नारी अपराध, अकर्मण्यता से त्रस्त है। सीमाओं पर संकट गहरा रहा है। अन्दरूनी हालात भी नक्सलवाद व आक्रोश के वशीभूत हैं ऐसे में आवश्यकता भारतीय संस्कृति अनुरूप भाषा, ललितकलाओं, राष्ट्रवादी व न्यायपूर्ण व्यवस्था हेतु पुन: नवीन भारत के निर्माण की है। जहां उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों को वितरण में भी सहभागिता मिले। श्रीकृष्णजी का संदेश स्पष्ट है कि यदि सामूहिक निष्ठा को जाग्रत किया जा सके तो दायित्व के बड़े से बड़े गोवर्धन को भी उठाया जा सकता है और रक्षा की जा सकती है अनाचार, दबंगता की अनावृष्टि से जो चाहे किसी भी बलशाली इन्द्र ही क्यों न हो। क्या भारत इस राह पर चलेगा।
राजकिशोर वाजपेयी 'अभय