ज्योतिर्गमय
बुरा जो देखन मे चला
हम सारा दिन किसी न किसी बात को लेकर शिकायत करते रहते हैं। अगर हमारे पास बुराई की शिकायत के लिए कुछ बचा नहीं है तो मौसम की बुराई करेंगे। रास्ते पर जाते हुए गंदगी की शिकायत करेंगे। हमारी प्रशंसाएं भी बुराई की शिकायत से भरी होती हैं. कितना अच्छा है.कितना अद्भुत है मगर। यानी हमारी प्रशंसा मगर के साथ शुरू होती है। यह कितने अफसोस की बात है कि हम अंतिम सांस तक शिकायतें करते रहते हैं। यह हमारी भाग्यहीनता है।
शिकायत का यह सिलसिला कहां तक चलेगा? इसका कोई अंत है? इच्छाएं तो रहती हैं पर हम सब अपने आप में ही तृप्त हो जाएं ताकि थोड़ी मुस्कुराहट या हंसी जीवन में आये। यह बहुत जरूरी है. हमें जिंदगी को जीना है. हम कितनी सारी चीजें सीखते हैं पर यह नहीं सीखा कि मन की पीड़ा से कैसे बचें! हम छोटी सी बात का बतंगड़ बनाते हैं।
दूसरों के बोले हुए दो-चार शब्दों को इधर-उधर खींचते रहते हैं. क्या जिंदगी का इससे ज्यादा कोई महत्व नहीं हैं? क्यों आप अपनी प्रशंसा नहीं करते? क्यों अपने को दैवी तत्व का अंश नहीं समझते? आप दैवी तत्व में जुडऩा चाहते हैं. आपको दैवी तत्व से कोई अलग नहीं कर सकता। जागिये और देखें- भगवान किसी मंदिर-मस्जिद में नहीं है, वह तुम्हारे दिल में छिपा बैठा है।
कोई आपको दो-चार बातें कह दे तो आप व्यथित हो जाते हैं. कोई थोड़ा हंसकर बात करे, भले ही मन में आपके प्रति अच्छी भावना न हो, तो आपको बात अच्छी लगती है. कोई बुरी बात कहे, हम उसे वहीं छोड़ उससे अलग हो जाएं. यह बात हमारी जिंदगी को अलग दृष्टिकोण देगी।
सहजता में आ जायें, थोड़ी देर के लिए ही सही. इस सहजता में जीना ही सत्संग है। सत्संग दिखावे की बात या प्रवचन नहीं। पोथी से पढ़-पढ़कर भूतकाल की गौरवपूर्ण बातें करना। यह तो सत्संग नहीं हुआ। हम भूतकाल की बातें करते रहते हैं. पर अपने वर्तमान क्षण को देख ही नहीं सकते। थोड़ी देर के लिए ही सही, थोड़े ही लोगों के साथ सही, मगर सहजता में रहें- यही सत्संग है। लोगों के साथ रहे और किसी के बर्ताव में दोष न देखें।