जनमानस
दुर्भाग्य वश, यह सजा है या मजा है?
दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म के दुष्कर्मी को जो सजा मिली है उससे लगता है कि हमारे देश का कानून अंधा है, क्योंकि वह नाबालिग-बालात्कारी होने के साथ-साथ लड़की के शरीर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला है। उसे सजा के रूप में फांसी मिलना चाहिए ना कि जेल में घर से ज्यादा सुविधाएं। इसलिए बड़ा दु:ख एवं अफसोस हो रहा है भारत के इस अंधे कानून पर कि इतने बड़े अपराधी को यह कैसी सजा है, क्या कोई बता सकता या कह सकता है कि इस सजा को किसी भी भारतीय आमजन ने पर्याप्त और भयावह अपराध के मुताबिक उचित बताया हो। अब प्रश्न उठता है कि हर अपराधी को जो सजा मिलती है वह दुबारा अपराध न करे उसे रोकने के लिए होती है। परंतु इस तीन साल की सजा रूपी मजा से क्या वह ऐसा वहशीपना करने पर पछताएगा? दूसरा प्रश्न जिनकी उम्र अठारह से कम है क्या उन्हें ऐसा करने में बढ़ावा नहीं मिलेगा? क्योंकि उनको रोकने के लिए या उनके अंदर किसी भी बात का डर पैदा करने के लिए हमारा कानून ही सक्षम नहीं है, जैसा कि मुंबई में फोटोग्राफर लड़की के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म में एक अपराधी नाबालिग बताया जा रहा है। अब तो वह भी सोच रहा होगा दिल्ली के नाबालिग हैवान को मिली सजा से कि उसे भी मजा आ गया।
उदयभान रजक लश्कर ग्वालियर