ज्योतिर्गमय

चिंतन में प्रेम हो, चिंता नहींकुछ 

आसुरी लोग भी कृष्ण का चिन्तन करते हैं किन्तु ईष्र्यावश-जिस तरह कंस करता था। वह सदैव चिन्ताग्रस्त रहता था और सोचता था कि न जाने कब कृष्ण उसका वध कर दें। इस प्रकार के चिन्तन से कोई लाभ नहीं होने वाला है। मनुष्य को चाहिए कि भक्तिमय प्रेम में उनका चिन्तन करे। निरन्तर कृष्णतत्व का अनुशीलन करे। वह उपयुक्त अनुशीलन क्या है? यह प्रामाणिक गुरु से सीखना है। कृष्ण भगवान हैं और उनका शरीर भौतिक नहीं है अपितु सच्चिदानन्द स्वरूप है।
इस प्रकार की चर्चा से मनुष्य को भक्त बनने में सहायता मिलेगी। अन्यथा अप्रामाणिक साधन से कृष्ण का ज्ञान प्राप्त करना व्यर्थ होगा। अत: मनुष्य को कृष्ण के आदि रूप में मन को स्थिर करना चाहिए।
उसे अपने मन में दृढ़ विश्वास करके पूजा में प्रवृत्त होना चाहिए कि कृष्ण ही परम हैं। उसे नतमस्तक होकर मनसा वाचा कर्मणा हर प्रकार से भक्ति में प्रवृत्त होना चाहिए। इससे वह कृष्णभाव में पूर्णतया तल्लीन हो सकेगा। इससे वह कृष्णलोक को जा सकेगा। उसे श्रवण, कीर्तन आदि नवधा भक्ति में प्रवृत्त होना चाहिए।

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