जनमानस
हर घर में हों कैलाश सत्यार्थी
भारत और पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया में कैलाश सत्यार्थी और मलाला युसुफजई को नोबेल पुरस्कार मिलने की खुशी मनाई जा रही है। कैलाश को बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने तथा मलाला को बच्चियों की शिक्षा के लिए शान्ति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। चूंकि कैलाश और मलाला दोनों ही बच्चों के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं इसलिए यह नोबेल बच्चों की समस्याओं को हल करने की दिशा में पथ-प्रदर्शक का कार्य करेगा तथा एक मील का पत्थर साबित होगा। 'बचपन बचाओ आन्दोलन (बीबीए) से शुरू हुई छोटी सी चिंगारी ने कैलाश सत्यार्थी को दुनिया के शिखर पर बिठा दिया। 'तारे जमीं पर फिल्म के बाद शायद यह पहला अवसर है जब देश में बच्चों से संबंधित समस्याओं को इतनी प्रमुखता से देखा जा रहा है।
कई बार नामांकित तथा शार्ट-लिस्टेड होने के बाद भी महात्मा गांधी को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला, जबकि उनके सिद्धान्तों पर चलकर कई लोग यह पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं और शायद कैलाश सत्यार्थी भी उन्हीं में से एक हैं। क्योंकि नोबेल शान्ति पुरस्कार की घोषणा करने वाली समिति ने कैलाश सत्यार्थी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने महात्मा गांधी की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। महात्मा गांधी को नोबेल न मिलना नोबेल पुरस्कार की विश्वसनीयता एवं प्रक्रिया पर सबसे बड़ा प्रश्न चिन्ह है। बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए कैलाश सत्यार्थी को पहले भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं तथा इस दिशा में उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन केवल एक कैलाश सत्यार्थी के प्रयास से बचपन नहीं बचाया जा सकता है, जब तक हर घर में एक कैलाश अथवा कैलाश जैसी सोच नहीं होगी तब तक बचपन पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हो सकता है। जानबूझकर बच्चों पर किये जाने वाले जुल्म की तुलना में अनजाने में उन पर होने वाले अत्याचारों की सूची बहुत लम्बी है। जिस दिन बचपन से हम सिर्फ बचपन जैसी अपेक्षाएं रखने लगेंगे उस दिन काफी हद तक बचपन सुरक्षित हो जायेगा। 'तारे जमीं पर फिल्म की तर्ज पर कार्य करने वाले व्यक्तियों तथा संस्थाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, वरना मां-बाप की अपेक्षाओं के बोझ तले दबे होने के कारण बचपन अपने अस्तित्व के लिए हमेशा संघर्ष करता रहेगा। बचपन को इस बोझ से मुक्ति दिलाने के लिए हम सबको अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वाह करना होगा। 'बचपन बचाओ आन्दोलन की तरह 'तारे जमीं पर तथा 'सत्यमेव जयते' जैसे कार्यक्रमों को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहे जाने की आवश्यकता है, जिससे बच्चों के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता एवं उनकी समस्याओं को प्रमुखता से उच्चतम स्थान पर रखा जा सके।
प्रो. एस. के. सिंह, ग्वालियर