ज्योतिर्गमय
प्रभु भक्तन के सदा सहायक
दुनिया का हर आदमी खुशी चाहता है, शांति चाहता है पर यह मिलेगी कहां से। यह बाहर नहीं है यह हमारे अंदर ही है। बस उसे बाहर लाने की जरूरत है। खुश रहना बच्चे की तरह। जैसा छोटा बच्चा अकारण मुस्कुराता है, किलकारियां भरता है। यह खुशी ईश्वर प्रदत्त है। इसे किसी वस्तु, व्यक्ति में नहीं ढूंढ़ा जा सकता है इसे अंदर से ही बाहर निकालना पड़ेगा। पर यह अंदर कैसे निर्मित होगी यह एक प्रश्न है। कहा है चाह गई चिन्ता गई मनुआ बेपरवाह। न कोई चाहत हो न कोई चिन्ता तो खुशी प्रवेश करेगी। अपना स्थायी निवास बना लेगी। खुशी और शांति का किला बहुत मजबूत होना चाहिये ताकि छोटी-छोटी बातें सेंध न मार सकें। यह दुनिया है यहां घटनाएं होती रहती हैं। कोई बीमार पड़ता है दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। मृत्यु भी जीवन का दूसरा पृष्ठ है। जन्म पहला पृष्ठ है। अब आप इन पर जो लिखो यह आपके ऊपर है। सुख-दुख, खुशी, शांति सब आप ही लिखते हैं। कहा भी है यहां मृत्यु होती है बीमारियां होती हैं और अन्य ऐसी घटनाएं होती हैं। इन्हें गंभीरता से न लें। जीवन में यह सब होना ही है सबके साथ। जीवन की सड़क में गङ्ढे भी हैं समतल जगह भी है। उतार-चढ़ाव भी है। हमें सब कुछ देखकर संभल कर चलना है। खुशी प्रभु की बहुत बड़ी नियामत है। हम खुश रहें खुशी बांटे जितनी हो सके। बांटने से यह बढ़ती है। किसी के काम आयें, किसी की मदद करें। वैसे तो यह काम रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाना चाहिए। जैसे और कई काम हम रोज करते हैं। कहा भी है परहित सरस धर्म नहीं भाई। जो दूसरों के हित में लगा रहता है वह अपने लिये खुशी की पूंजी इक_ी करता रहता है। खुशी और शांति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक है तो दूसरा रहेगा ही रहेगा। ईश्वर ने हमें खुश रहने के लिये ही भेजा है पर हम छोटी-छोटी बातों में, घटनाओं में अपने आपको परेशान कर लेते हैं।
चिन्ता, भय, तनाव में डूब जाते हैं क्योंकि हमारा अपने मन पर काबू नहीं रहता। जिसका मन उसके काबू में है शांति उसकी दासी बनकर रहेगी। मन को काबू में रखना ज्यादा जरूरी है। मन नियंत्रण में रहेगा तो सब ठीक रहेगा। मन ही राज करता है यदि मन अच्छा है तो वह अच्छा शासक है और मन दूषित है तो वह बुरा शासक है। शासक अच्छा रहेगा तो प्रजा सुखी रहेगी। सारे अंग सुचारू रूप से काम करेंगे वर्ना तोड़ फोड़ करेंगे। खुश रहने और शांत रहने के लिये जो जरूरी है वह करें। बस यही मेरा संदेश है।ष्