जनमानस
ए.के-47 से अधिक खतरनाक है बच्चों के हाथ में मोबाइल
जिस तरह से ए.के.-47 के बढ़ते दुरूपयोग को देखकर मिखाइल क्लाशनिकोव दुखी हुए थे, उसी तरह कहीं ऐसा न हो कि समय से पहले बच्चों के हाथों में मोबाइल पहुंचाने के लिए भविष्य में हमें भी पश्चाताप एवं दुख व्यक्त करना पड़े। नि:सन्देह मोबाइल का आविष्कार मानव जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना है, लेकिन बच्चों के हाथ में इन्टरनेट के साथ यही आविष्कार उतना ही खतरनाक है जैसे कोई व्यक्ति नशे की हालत में हथियार लिये हो। इन्टरनेट के द्वारा समय से पहले मिलने वाली जानकारियां बच्चों में स्थाई रूप से ऐसी विकृतियां उत्पन्न कर रही हैं जिनके दुष्परिणाम बच्चों को जीवन भर झेलने पड़ेंगेे। एक सीमा से अधिक मोबाइल का प्रयोग उपयोगिता हा्रस नियम की तरह ही है। अभी तक तो लोगों का यही मानना है कि मोबाइल अपनों को अपनों से जोड़ रहा है लेकिन ''तू कहे कागज की लेखी, मैं कहूं आंखन की देखी'' की तरह हम पहले अपने आस-पास देखें फिर तय करें कि मोबाइल का अधिक प्रयोग हमें आपस में जोड़ रहा है अथवा तोड़ रहा है। जिस तरह गूगल पर सब कुछ उपलब्ध होने के बावजूद भी प्रामाणिक एवं महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करना आसान कार्य नहीं है, ठीक उसी तरह मोबाइल का सदुपयोग एवं समुचित प्रयोग करना भी आसान नहीं है, और कम से कम बच्चों से तो हम ऐसी अपेक्षा नहीं कर सकते हैं। यदि हमें मोबाइल रूपी वरदान को अभिशाप होने से बचाना है तो बच्चों को मोबाइल देेते समय बहुत सावधानियां रखनी होंगी, वरना हम यही कहते रह जायेंगे कि 'लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई'।
प्रो. एस.के. सिंह, ग्वालियर