ज्योतिर्गमय
हर एक की अपनी दुनिया
दुनिया वस्तुत: कैसी है? इसका एक ही उत्तर हो सकता है कि वह जड़ परमाणुओं की नीरस और निर्मम हलचल मात्र है।
यहां अणुओं की धूल बिखरी पड़ी है और वह किन्हीं प्रवाहों में बहती हुई इधर-उधर भगदड़ करती रहती है। इसके अतिरिक्त यहां ऐसा कुछ नहीं है, जिसे स्वादिष्ट-अस्वादिष्ट या रूपवान- कुरूप कहा जा सके। हमें नीम की पत्ती कड़वी लगती है पर ऊंट उन्हें रुचिपूर्वक खाता है. वस्तुत: कोई वस्तु न मधुर है न कड़वी। हमारी अपनी संरचना अमुक वस्तुओं के साथ तालमेल बिठाने पर जैसी कुछ प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है, उसी आधार पर हम उसका रंग, स्वाद आदि का निर्धारण करते हैं।
यही बात प्रिय अथवा अप्रिय के संबंध में लागू होती है. वस्तुत: न कोई अपना है, न बिराना. इस दुनिया के आंगन में अगणित लोग खेलते हैं। इनमें से कभी कोई किसी के साथ हो जाता है तो कोई प्रतिपक्षी का खेल खेलता है। मनुष्यों की भिन्न-भिन्न मन:स्थिति के कारण एक ही तथ्य के संबंध में परस्पर विरोधी मान्यताएं एवं रुचियां होती हैं। यदि यथार्थता एक ही होती तो सबके एक ही तरह के अनुभव होते।
जबकि एक व्यक्ति परमार्थ परोपकार में संलग्न होता है, तो कोई दूसरा अपराध में। एक को भोग प्रिय है, तो दूसरे को त्याग। एक को प्रदर्शन में रुचि है तो दूसरे को सादगी में। इन भिन्नताओं से यही सिद्ध होता है कि वास्तविक सुख-दु:ख, हानि-लाभ का निर्णय किसी सार्वभौम कसौटी पर नहीं, मन:संस्थान की स्थिति के आधार पर किया जाता है। यह सार्वभौम सत्य यदि प्राप्त हो गया होता तो संसार में मतभेदों की गुंजाइश न रहती।
सुख-दु:ख की अनुभूति सापेक्ष है. एक-दूसरे की तुलना कर स्थिति के भले-बुरे का अनुभव किया जाता है। कोई मध्यम वर्ग का व्यक्ति अमीर की तुलना में गरीब है, किन्तु महादरिद्र की तुलना में वह भी अमीर है। ज्वर पीडि़त व्यक्ति स्वस्थ मनुष्य की तुलना में दु:खी है पर गंभीर रोग से ग्रसित रोगी की तुलना में सुखी। शरीर पीड़ा की कुछ अनुभूतियों को छोड़कर अधिकांश दु:ख-सुख सापेक्ष होते हैं।
उसी स्थिति में एक व्यक्ति अपने को सुखी अनुभव कर सकता है और दूसरा दु:खी। इन विभिन्न निष्कर्षों के आधार पर सत्य को पहचानना कठिन है। विज्ञान बताता है कि यह जगत तरंगों का परिणाम है। शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श की तन्मात्राएं व विचार विवेचना, अभिव्यक्ति, अनुभूति, अभिव्यंजना आदि के पीछे तरंगे काम करती हैं। यहां तरंगों के अतिरिक्त और कुछ नहीं।