जनमानस
राहत, बनाई न बने
किसान की मेहनतकश कमाई होती है, उसकी फसल जिसके आने के इंतजार में घर-परिवार ही नहीं, नन्हें-नन्हें मासूम तक अपनी-अपनी भविष्य की योजनाएं बनाकर रखते है, किन्तु प्राकृतिक तौर पर जब भी उसके साथ आपदाओं का सामना करने का समय आया वह लगभग टूटता गया और आज के विकासीय दौर में भी वह खुश नहीं है। किसान का परिवार सुखी नहीं है। अत्यंत कठिनाइयों के मध्य स्थित है। इस बार राष्ट्रीय स्तर का नुकसान राज्य ने व राज्य के किसान परिवारों ने उठाया है। सरकारी राहत मात्र बानगी बनकर न रह जाए, क्योंकि राजस्व विभाग का अमला भ्रष्ट ही नहीं, निकम्मा भी है। तब मुख्यमंत्रीजी को चाहिए, जैसा कि वे कदम उठा भी रहे हैं। स्वयं गांव-गांव, कस्बे-कस्बे जाकर किसानों को सुनना होगा, उनको भरपूर आर्थिक मदद करना होगी। तभी आप राष्ट्र स्तर के पुरस्कार के वाजिब हकदार कहलाएंगे अन्यथा किसान का अभिन्न पर्याय है आत्महत्या। जिसे नहीं करना चाहिए। किसान भाई जानते हैं बचेगा नर बसाएगा घर। हमारे मुख्यमंत्री अतिसंवेदनशील हैं।
रमेश, उज्जैन