ज्योतिर्गमय
लक्ष्य का चयन
मानव जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है लक्ष्य का चयन। इसके लिए परम आवश्यक है लक्ष्य की खोज। लक्ष्य की खोज निर्धारित करते समय अपनी क्षमता, परिस्थिति और जीवन मूल्यों की पड़ताल करना आवश्यक है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसी से मिलने वाले तथ्यों का विवेचन-विश्लेषण करके हम समुचित जीवन-लक्ष्य का निर्धारण कर सकते हैं। लक्ष्य के चयन में हमारी प्रतिभा और क्षमता की समुचित पहचान होती है। हमें अपनी उन समस्त विशेषताओं को जानना-तलाशना चाहिए, जो बाहर अभिव्यक्त होने के लिए छटपटा रही हैं। हमें इन तमाम विशेषताओं की सूची बनानी चाहिए और इन्हें उभारने व उपयोग में लाने के लिए अपनी क्षमता का आकलन करना चाहिए। सबसे पहले यह देख लेना आवश्यक है कि हम अपनी किस विशेषता को प्रयोग में लाने के लिए सक्षम और समर्थ हैं। जब एक बार लक्ष्य निर्धारित हो जाता है, तब अपनी योग्यता व प्रतिभा का उपयोग करना चाहिए। लक्ष्य पथ पर चलते हुए प्रतिभा का समुचित-सुनियोजित प्रयोग हमें सफलता की ओर ले जाता है। लक्ष्य जीवन-मूल्यों के समकक्ष और उससे बड़ा होना चाहिए। जीवन मूल्य हमारी सांसों में रचे-बसे होते हैं। ये मूल्य हमारे श्रेष्ठ विचार व कर्तव्यों के रूप में झलकते रहते हैं। ये हमारे अस्तित्व के साथ जुड़े रहते हैं। भगतसिंह ने अपने जीवन-मूल्यों को राष्ट्रप्रेम से जोड़ रखा था। उनका जीवन अपने लिए नहीं, बल्कि देश के लिए था।
आज की परिस्थिति में भी हम अपने श्रेष्ठ मूल्यों की रक्षा कर सकते हैं, परंतु लक्ष्य को स्वार्थपूर्ति और अहंकार के पोषण के लिए सीमित नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। इसलिए आज हमारी अनमोल जिंदगी सस्ती हो गई है। हम छोटे से छोटे स्वार्थ के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए तैयार और तत्पर रहते हैं। आजकल तमाम लोगों का जीवन लक्ष्य पद, प्रतिष्ठा और पैसा प्राप्त करना हो चुका है। आज उसे लक्ष्य के रूप में वरण किया जाता है, जो लोगों की नजरों में सम्मानित और प्रतिष्ठित है। आर्थिक या ऊंचे पदों पर आसीन होने का लक्ष्य सुनिश्चित करना बुरी बात नहीं है। किसी के कहने से या किसी को दिखाने के लिए अपना लक्ष्य बनाना कुएं और खाई में गिरने जैसा है। लक्ष्य हमारी आंतरिक शक्तियों को जाग्रत करता है।