जनमानस
दया याचिका का औचित्य
अभी-अभी न्याय प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्न खड़े हो गए हैं। आम और गरीब लोगों में यह पहले से ही मान्य है कि भारतीय न्याय प्रणाली इतनी लचर या ढीली है कि बड़े से बड़े क्रूर अपराधी भी संविधान को ठेंगा दिखाकर बेखौफ बरी हो जाते हैं तथा समाज में आकर नेतागिरी में उच्च पदों पर विराजमान हो जाते हैं। ऐसी व्यवस्था से तो खाफ पंचायतें क्या बुरी है, हमारा संविधान मजाक की वस्तु बन गया है। राष्ट्रपति भी सत्तारूढ़ पार्टी से ही चुना जाता है अर्थात् किसी न किसी रूप में हत्यारों को छोडऩे में सत्तारूढ़ दल भी जिम्मेदार होता है। इसलिए राज्यपाल या राष्ट्रपति से उक्त अधिकार वापस लेना ही बेहतर होगा। राष्ट्रपति जी पर भी हत्यारों के प्रति दयावान बनने का दाग तो लग ही गया है, संविधान की पुन:व्याख्या का समय आ गया है, जिन क्रूर हत्यारों को फांसी की सजा दी गई थी, वे अब देश में सीना तानकर ताल ठोककर कहेंगे कि लो हमने मासूम ी, बच्चों यहां तक कि प्रधानमंत्री तक को मार डाला, क्या कर लिया तुम्हारी कोर्ट ने, तुम्हारे जज ने। अच्छा होगा फांसी की सजा प्राप्त क्रूर हत्यारों के प्रति दया न दिखाकर बेकसूरों के लिए न्याय करना होगा तथा सुप्रीम कोर्ट को ही अंतिम फैसले का अधिकार हो न कि राष्ट्रपति को।
राजेन्द्र कोचला, इंदौर