ज्योतिर्गमय
मनोभावों का दर्पण है हमारा चेहरा
किसी ने ठीक ही कहा है कि भ्रांतियां मनुष्य की स्वनिर्मित और स्वनिर्धारित हैं, जिनमें वह एक को भला और दूसरे को बुरा बताता है, अन्यथा सृष्टा की हर संरचना अपने में विशिष्टता धारण किए हुए है। मुनष्य ही है, जो जिसके साथ चाहता है, प्रभावित होकर अपनत्व बढ़ाता, घनिष्ठता जोड़ता और राग-द्वेष का आरोपण कर लेता है, घृणा या प्रेम करता है, जबकि वस्तुत: ऐसा है नहीं। सभी प्राणी एवं वस्तुएं नियति नटी के किसी महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए रची गई हैं। उनकी अपनी-अपनी विशिष्टता एवं महत्ता है। यही तथ्य मनुष्य पर भी लागू होता है। दृष्टिकोण का परिवर्तन मन:स्थिति को भी बदलकर रख देता है। मान्यताओं के बदलते ही घृणा के स्थान पर प्रेम की रसानुभूति होते देर नहीं लगती। सर्वत्र दृष्टिगोचर होने वाली व्यथाओं का कारण मनुष्य की अपनी स्वनिर्मित मान्यताएं ही हैं।
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