छात्र बने परिवर्तन के दूतः राष्ट्रपति
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज केरल के कसारागॉड में केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि छात्रों को सफलता परिवर्तन का दूत बनकर लोगों की मुश्किलों और पिड़ाओं को दूर करने में मदद करनी चाहिय। भारत की सफलता गरीबी, अभावों और पिछड़ेपन के अभिशापों से मुकाबले के लिए सभी सकारात्मक शक्तियों को एकजुट करने में हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि यहां मौजूद छात्र भाग्यशाली हैं कि उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला हैं। पर, इस सौभाग्य के साथ एक बड़ी नैतिक जिम्मेदारी भी जुड़ी हुई हैं। निजी महत्वाकांक्षाएं होना उचित है पर, जीवन में सिर्फ स्वयं तक नहीं सीमित रह जाना चाहिए। अपने निजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के दौरान हमेशा बड़ा सोचना चाहिए, मन में बड़े लक्ष्यों को सामनें रखना चाहिए। अपने निजी लक्ष्यों और बड़े लक्ष्यों को साथ-साथ लेकर चलना चाहिए न कि अलग-अलग।
श्री मुखर्जी ने कहा कि अगर छात्र देश का भविष्य हैं तो अध्यापक उस भविष्य को रूपाकार देते हैं। प्राचीन भारत में अध्यापक एक उदाहरण लायक जीवन जीया करते थे। जो सम्मान उन्हें दिया जाता था, वे उसके योग्य हुआ करते थे। आज भारत को बड़ी संख्या में वैसे ही अध्यापकों की आवश्यकता है जो न सिर्फ अध्यापन और अपने छात्रों के प्रति समर्पित हों बल्कि हमारे समाज के नैतिक ताने-बाने को रूपाकार देने की भी निस्वार्थ इच्छा रखते हों।
राष्ट्रपति ने इस विश्वविद्यालय का नाम, क्षेत्र में बहने वाली नदी के नाम पर 'तेजस्विनी हिल्स' रख दिया। कसारागॉड में हुई दुर्भाग्यपूर्ण 'एंडोसल्फान त्रासदी' के मौके पर जन स्वास्थ्य व चिकित्सा विद्यालय बनाये जाने का राष्ट्रपति ने स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस विद्यालय को चिकित्सा की सभी प्रणालियों की उच्चशिक्षा और अनुसंधान का एक ऐसा मंच बन जाना चाहिए जहां सामुदायिक चिकित्सा और सस्ते इलाज पर जोर दिया जाए।