ज्योतिर्गमय
आंतरिक आकाश का सहारा
समय-समय पर पृथ्वी हिलती है और इसके हिलने से मनुष्य जाग उठता है जो गहरी तन्द्रा में रहता है।
वह प्रकृति का केवल दुरुपयोग ही नहीं करता बल्कि ईंट और गारे में ही विश्वास भी रखता है। तुम्हारी वास्तविक सुरक्षा तुम्हारी आत्मा में है, न कि ईट और गारे में।
कदाचित पृथ्वी तुमसे यही कहना चाहती है। भूकम्प, बाढ़ और ज्वालामुखी सभी इस सत्य को दर्शाते हैं कि कुछ भी स्थाई नहीं है। और जो अस्थायी है तुम्हें उससे कोई सुरक्षा प्राप्त नहीं हो सकती।
आपदाएं तुम्हारे पास एक झटके के रूप में आती हैं और तुम्हें जागृत करती हैं। जब इस प्रकार की आपदायें आती हैं, हम उनके कारण समझने की कोशिश करने लगते हैं, जिससे हम किसी को दोषी ठहरा सकें।
अजीब बात यह है कि जब तुम्हें कोई दोषी ठहराने के लिए मिल जाता है, तुम्हें आराम आ जाता है, परंतु प्राकृतिक विपदाओं के सामने तुम किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते. वे तुम्हारे पास एक सदमें के रूप में आती है। ज्ञान के साथ यह सदमें तुममें तीव्र विकास ला सकते हैं। परंतु ज्ञान के बिना यही तुम्हें नकारात्मकता और अवसाद की ओर ले जाते हैं।
आप सवाल पूछ सकते हैं कि प्रकृति छोटे-छोटे मासूम बच्चों का विनाश क्यों करती है? प्रकृति केवल अपना कार्य करती है। यह युवा और वृद्ध में भेद नहीं करती। क्या तुम समझते हो कि जो लोग मांस और अंडे खाते हैं या फूल तोड़ते हैं, वे दयालु नहीं होते?
प्रकृति से प्रश्न करने की अपेक्षा जागो और सेवा के अवसरों को ढूंढो। विध्वंस की एक और सकारात्मक बात गुजरात का पुनर्निर्माण है जो भूकम्प न आने पर नहीं हो पाता। एक और दिलचस्प बात कि सूखाग्रस्त क्षेत्र में स्वच्छ जल के झरने उत्पन्न हुए हैं। पृथ्वी को अपनी प्रिय समझना ज्ञान है। वह चाहे जितना भी हिले या टूटे फिर भी तुम्हें वह प्रिय है।
तुम्हें इसमें हमेशा अच्छाई ही दिखाई देती है। आकाश के अलावा अन्य चार तत्व समय-समय पर अस्त व्यस्तता उत्पन्न करते हैं. यदि तुम उनसे सहारे की आशा रखोगे वे तुम्हें हिला देंगे और आकाश की ओर ले जाएंगे। अपने आंतरिक आकाश में सहारा पाना ही अध्यात्म है।