ज्योतिर्गमय
संतोष का महत्व
संतोष और असंतोष का भाव हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है। परमात्मा ने मनुष्य को भी बनाया और उसने वस्तुओं को भी बनाया। ऐसा इसलिए, क्योंकि मनुष्य को भोजन, वस्त्र आदि की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए तमाम वस्तुएं मनुष्य के लिए पर्याप्त हैं। प्रकृति का प्रत्येक जीव प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं का उपयोग करता है और वह संतुष्ट रहता है। मनुष्य भी अपनी आवश्यकतानुसार इस संसार से वस्तुएं प्राप्त करता है। जब प्रत्येक जीव के लिए प्रकृति में वस्तुएं उपलब्ध हैं तो पशु-पक्षी उन्हीं वस्तुओं से संतुष्ट रहते हैं और मनुष्य क्यों असंतुष्ट रहता है? इसका कारण एक ही है कि पशु-पक्षियों को संग्रह की चिंता नहीं होती, वह कल की चिंता नहीं करते, केवल वर्तमान में जीते हैं, उन्हें पता है कि कल होता ही नहीं।
भविष्य के लिए संग्रह ही दुख का कारण है। अगर पशु-पक्षी की तरह मनुष्य भी वर्तमान में जीने लगे तो वह भी दुखी नहीं होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि दुख कल की चिंता में है, कल के लिए जो संग्रह हो रहा है, उसमें दुख है। वही दुख मन में असंतोष पैदा करता है, जिस कारण आज प्रत्येक व्यक्ति अपने सिर पर भविष्य की चिंता की गठरी लिए भागे जा रहा है। पक्षी अपने जीवन के एक-एक क्षण को भोग लेता है और मनुष्य को पूरे जीवन में एक क्षण भी जीने का सौभाग्य नहीं मिलता। कोयल आधी रात में वृक्ष की डाली पर गाती रहती है और मनुष्य उस समय चिंता की अग्नि में जलता रहता है, क्योंकि उसे और चाहिए। उसे जो भी प्राप्त हो जाता है, उससे अधिक पाने के लिए वह और व्यग्र हो जाता है। मजदूर खेत में काम करता है। शाम को पत्नी-बच्चों के साथ रोटी खाता है और सो जाता है। हाथ का तकिया बनाकर चटाई पर वह गहरी नींद में सो जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वह अपने भविष्य के लिए चिंतित नहीं है, उसे पता है कि कल फिर वह कमा लेगा। उसे इससे अधिक नहीं चाहिए। यही कारण है कि मजदूर कभी भी नींद की गोली खाकर नहीं सोता, लेकिन बड़े लोग जिन्हें बहुत कुछ संग्रह करना है वे उसी चिंता में न भरपेट खा पाते है और न ही पूरी नींद ले पाते हैं। संतोष और असंतोष में मूलत: यही अंतर है। अगर कोई व्यक्ति अपनी प्रतिभा, परिश्रम व ईमानदारी से धन-दौलत व प्रतिष्ठा अर्जित करता है तो यह काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन ऐसे व्यक्ति के मन में संतोष का भाव होना चाहिए। जो व्यक्ति संतुष्ट है वह सबसे अधिक सुखी है।