ज्योतिर्गमय
प्रेम की भाषा
प्रेम की बूंद तो सब ने देखी है। ममता, स्नेह, आदर्श और प्रणय, यह सब प्रेम ही है, जिसे मनुष्य सदियों से निभा रहा है। आप भी प्रेम की भाषा इसी तरह समझ रहे हैं। आप भी बह रहे हैं। नदी के दो पाटों के बीच आपका बहना-आपके साथ नहीं है। आप समय के साथ नहीं हैं। बस आप बह रहे हो। जीने के लिए। जीना ही आपका स्वभाव बन गया है। जीने के लिए ही कुछ करना आपका कर्म बन गया है। इसलिए आप सांसारिक प्रेम की बूंद में ही डूब गए हो। प्रेम की बरसात को कुछ लोगों ने ही जाना है। रिम-झिम फुहारों के साथ प्रेम की अनेक बरसातों को आपने बिताया होगा, पर प्रेम को पड़ाव डालते आपने नहीं देखा। और आज तक मैंने भी नहीं देखा है। मीरा का प्रेम पदों में सिमटकर रहा है। वह भाव के सागर में लहरों से ही खेलती रह गईं। विष को प्रेम का प्याला समझ कर पी गईं।
इतिहास के पन्नों पर प्रेम की अनेक गाथाएं अंकित हैं। कहीं पर बुद्ध व महावीर का निर्वाण और बुद्धत्व की शांति प्रदायनी प्रेमकथा है, तो कहीं पर कबीर, नानक, रहीम, रसखान, बिहारी के दोहे, सत्संग और वाणी है, तो कहीं पर पतंजलि, गोरखनाथ, भैरव का योग प्रेम। कहीं पर गौतम, कणाद, पुलस्त्य, अत्रि, अनुसूया, व्यास व सुखदेव का भक्ति प्रवाह है। कहीं पर जीसस, मुहम्मद, अरस्तू, सुकरात का प्रेम है तो कहीं पर राम-सीता की प्रेम विरह यात्रा है। कहीं पर कृष्ण की रासलीला प्रेम की अद्भुत लोक यात्राएं हैं। गोपियों की विरह वेदना में राधा की प्रेम गाथा। ये सब प्रेम के बहाव का अंग बन कर लुप्त हो गए, केवल श्रृंखलाओं की कडिय़ों में माला की कोई प्रथम श्रृंखला बन गया तो कोई माध्यम की कड़ी। किसी ने अंतिम श्रृंखला बनने का प्रयास किया, लेकिन प्रेम ने किसी के साथ पड़ाव नहीं किया। सब कुछ
अभिव्यक्ति बन कर रह गई। सब कुछ अनुभूतियों के बहाव में केवल स्मृतियां ही शेष रह गईं। इन स्मृतियों से सुसज्जित पुराण और इतिहास की गाथाएं, जिन्हें पढ़-पढ़कर आप सब अपने आपको समझाते हो, सांत्वना देते हो और इस तरह से अपने आपको धोखा भी देते हो। आप भी अपना अतीत उन्हीं की तरह बनाना चाहते हो, लिखना चाहते हो। इसलिए उस कल को आप आज तक ढो रहे हो। आपका कल तो खराब हो ही गया। आप आज को भी उस कल के बोझ से दबाये हुए हो। आप जो हो, उसे समझ नहीं पाते। आप जो हो, वह बन नहीं पाते।