जनमानस
लानत है ऐसी मीडिया पर
हमारी कानून व्यवस्था में बाल श्रम नियोजन को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अगर ऐसा पाया जाता है तो इस पर जुर्माने के साथ सजा का भी विधान है। कारखानों, होटलों, ढाबा एवं अन्य कार्य स्थलों पर इससे संबंधित सूचना पट लगाना अनिवार्य किया गया है ताकि यह व्यवस्था सभी की स्मृति में बनी रहे। कानून की ऐसी व्यवस्था देख कर तो यही लगता है कि हमारे देश का बचपन कितना सुरक्षित है। वास्तव में सच्चाई का दूसरा स्वरूप तो यह है जब हमें बचपन भीषण गर्मी के कड़ाके की धूप में पसीने से लथपथ समाचार पत्र की गड्डी लिए एक रुपए और ताजा समाचार चिल्लाते हुए यहां से वहां और वहां से यहां भागते दिखाई पड़ते हैं तो लानत है ऐसी मीडिया पर जिन्हें इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए था। वे इन मासूमों से बचपन से अनुबंध कर अपना धंधा करवाते हैं।
दूसरी ओर अगर हम टेम्पों स्डैण्डों पर भी नजर डाले तो सैकड़ों ऐसे बच्चे भी मिल जाएँगे, जिनका बचपन ही नहीं बल्कि उनका जीवन भी दांव पर लगा हुआ है। टेम्पो चालक कुछ पैसों का लालच दे कर इनसे सवारियों को बुलाने और कन्डक्टरी के लिए इस्तेमाल करते है। शर्म आती है ऐसी कानून व्यवस्था पर। नगर प्रशासन को इस दिशा में अतिशीघ्र संज्ञान लेने की जरुरत है।
प्रियंका प्रजापति, ग्वालियर