जनमानस
बहुत घातक होंगे आर्थिक असमानता के दुष्परिणाम
जनवरी 2014 में औक्सफेम की कार्यकारी निदेशक विनी बयानयिमा ने एक चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया था कि दुनिया की आधी आबादी के पास इतनी संपत्ति नहीं है जितनी कि 85 लोगों के पास। भले ही इस खबर को उतनी प्रमुखता नहीं मिली हो जितनी मिलना चाहिये थी, लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं होना चाहिए कि आने वाले समय में इस तरह की आर्थिक विषमता से समाज में कई तरह की विकृतियां उत्पन्न होंगी जिनके कारण दुनिया टूटने के कगार पर आ सकती है। चूंकि नीतियों का निर्माण आज बाजार एवं आर्थिक पैमाने के आधार पर हो रहा है इसलिए व्यवसायियों एवं धनाढ्यों ने राजनीति, मीडिया एवं प्राकृतिक संसाधनों सहित पूरे बाजार पर कब्जा कर लिया है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका का भारत-पे्रम भी इसी बाजारवाद का ही परिणाम है, वरना और क्या कारण हो सकता है कि जो अमेरिका आज नरेन्द्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ रहा है अभी कुछ समय पहले ही उसी अमेरिका ने उन्हें वीजा देने से भी मना कर दिया था। हमें ऐसी नीतियों पर विराम लगाना होगा जो अमीरों को और अमीर बना रही हैं एवं गरीबों के हित में नहीं हैंै। स्वतंत्रता के बाद जल्दी एवं तेजी से बहुत अधिक धन कमाने वाले व्यवसायी, नौकरशाह एवं राजनेताओं सहित सभी व्यक्तियों की संपत्ति की जांच होनी चाहिए। हो सकता है कि हमें अपने देश में ही विदेशों में जमा काले धन से अधिक धन देखने को मिल जाये। गांव एवं शहरों का अन्तर देखने पर टी.वी. का एक विज्ञापन याद आता है, जिसमें कहा जाता था कि 'पड़ोसियों की जलन, आपकी शान' - हमें इस धारणा को बदलना होगा, क्योंकि इस मानसिकता के साथ हम 'सबका साथ - सबका विकास' अवधारणा को चरितार्थ नहीं कर पायेंगे। चूंकि हमारा देश 'वसुधैव कुटुम्बकम' के सिद्धान्तों पर चलने वाला देश है इसलिए हमारी नीतियां इस तरह की नहीं होनी चाहिए, जिनसे आर्थिक असमानता को प्रश्रय मिले। 'समान शिक्षा एवं स्वास्थ्य' आर्थिक असमानता से लडऩे की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित हो सकता है, इसलिए गांवों को अधिक मजबूत एवं आत्मनिर्भर बनाना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए तथा आर्थिक असमानता कम करने के लिए वर्तमान वेतन ढांचे पर भी पुनर्विचार किया जाना चाहिए। प्रो. एस.के.सिंह, ग्वालियर