उच्च न्यायालय का आदेश बना पाक जासूस की रिहाई में रोड़ा

आठ साल से ग्वालियर जेल में बंद है अब्बास अली


अंशुल वाजपेयी / ग्वालियर। उच्च न्यायालय के आदेश के चलते पाकिस्तान दूतावास के अधिकारी चाह कर भी पाकिस्तानी जासूस को छुड़ाने की पहल नहीं कर पा रहे। यही कारण है कि जासूस को समझौते के तहत छह माह में छुड़ाने का आश्वासन देने वाले पाकिस्तान दूतावास के अधिकारी 52 माह बीतने के बाद भी चर्चा को आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
भारत के अतिमहत्वपूर्ण स्थानों की जासूसी करने वाला अब्बास अली खान पिछले आठ साल से ग्वालियर जेल में बंद है। जानकारी के अनुसार 20 अगस्त 2010 को राजस्थान की राजधानी जयपुर में काउंसिलिंग मीटिंग हुई थी जिसमें पाकिस्तान के राजदूत शकिकुर्र रहमान ने भाग लिया था। इस मीटिंग में पाकिस्तानी जासूस से भी पूछताछ की गई थी और भरोसा दिलाया गया था कि उसे समझौते के तहत छह माह में जेल से रिहा करा दिया जाएगा। लेकिन 52 माह बीतने के बाद भी उसकी रिहाई नहीं हो सकी है। उल्लेखनीय है कि जासूसी के आरोप में ग्वालियर जेल में सजा काट रहे अब्बास अली खान ने 13 माह पूर्व पाकिस्तान दूतावास के अधिकारी को पत्र लिखकर जेल से रिहा कराने की गुहार लगाई थी साथ ही 2010 में पाकिस्तान दूतावास के उच्च अधिकारियों द्वारा दिए गए आश्वासन का भी उल्लेख किया था लेकिन आज तक दूतावास से कोई जवाब नहीं आया।

आईएसआई को दे रहा था खुफिया जानकारी
अब्बास के ठिकाने से कैमरा, फोटो के निगेटिव, मुरार छावनी के संवेदनशील स्थानों की जानकारी व फोटोग्राफ व कई सिम कार्ड मिले थे। इसके अलावा दिल्ली, मुंबई व अन्य शहरों में घूमने के दौरान उसने सेना से जुड़ी गोपनीय जानकारियां इक_ा कर पाकिस्तान को दी थी। तत्कालीन कर्नल आनंद शर्मा ने न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि अगर यह दस्तावेज दुश्मन को भेज दिए जाते तो देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता था। वहीं जब अब्बास की कॉल डिटेल निकाली गई तो पता चला कि ज्यादातर कॉल पाकिस्तान व विदेश के अन्य नंबरों पर की गई थीं।
न्यायालय का सख्त रुख
पाकिस्तानी जासूस ने 2008 में क्रिमिनल अपील दायर करते हुए निचली अदालत के निर्णय को चुनौती दी थी। लेकिन उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ ने उसकी अपील खारिज कर दी। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी 14 साल की सजा जेल में पूरी कर ले, तब उसे पहरे में भारत-पाक की सीमा में ले जाए और वहां से पाकिस्तान भेजें। ऐसे में ये अनुमान लगाया जा रहा है कि न्यायालय के कड़े रवैये के चलते पाकिस्तान दूतावास के अधिकारी चर्चा करने से पीछे हट गए हैं।

ये रहा था घटनाक्रम

चार महीने का वीजा बनवाकर अब्बास अली उर्फ माजिद बाघा बॉर्डर से टे्रन से 17 जनवरी 2005 को भारत के अटारी रेलवे स्टेशन पर उतरा। 10 फरवरी को पाकिस्तान वापस चला गया और फिर 12 जुलाई 2005 को उसी रास्ते से भारत आया। लेकिन इस बार वह वापस नहीं गया। दिल्ली, मुंबई और उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर सहित अन्य संवेदनशील स्थानों पर घूमते हुए वह ग्वालियर पहुंचा। जहां वह माधो सिंह पुत्र वेदप्रकाश के नाम से नई सड़क स्थित डलियावाला मोहल्ला में रहने लगा। इस दौरान गेंड़े वाली सड़क निवासी आमीन हुसैन ने अब्बास अली का ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी कागजातों के आधार पर बनवाया । अब्बास अली ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर न केवल ग्वालियर से राशन कार्ड बनवा लिया बल्कि मतदाता सूची में नाम भी जुड़वा लिया। बुलंदशहर के मोहम्मद शाहिद नाम के एक व्यक्ति ने उत्तर प्रदेश से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पासपोर्ट भी बनवाया था। 13 मार्च 2006 को इंदरगंज थाना पुलिस ने मुखबिर की सूचना के आधार पर जासूस को गिरफ्तार किया था। 28 मई 2008 को न्यायालय ने आरोपी को चौदह वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी। 

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