फर्जी दस्तावेजों के सहारे कराया था ट्रस्ट की भूमि का नामांतरण

ट्रस्ट के दस्तावेजों की जगह लगाई निजी भवन की रजिस्ट्री व नक्शा,मामला पाली रोड स्थित प्रताप धर्मशाला के फर्जी नामांतरण का


श्योपुर। नगर के पाली रोड स्थित ट्रस्ट प्रताप धर्मशाला की भूमि को निजी सम्पत्ति बनाने में फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया गया है। ट्रस्ट की भूमि पर भू-स्वामी बनने के लिए निजी भवन की रजिस्ट्री व नक्शा लगाकर राजस्व विभाग की मिली-भगत के चलते ट्रस्ट की भूमि को अपने नाम करा लिया गया। दु:खद बात यह है कि इतना बड़ा घालमेल होने के बाद भी प्रशासन को इसकी खैर-खबर तक नहीं है। वर्तमान स्थिति यह है कि फर्जी तरीके से नामांतरण कराई गई ट्रस्ट की भूमि को निजी रूप से संचालन किया जा रहा है। इतना ही नहीं ट्रस्ट की दुकानों का भी विक्रय कर दिया गया। जबकि नियमानुसार ट्रस्ट की भूमि पर भू-स्वामी बनना या उक्त भूमि का विक्रय करना पूरी तरह नियम विरुद्ध है।
मालूम हो कि नगर के पाली रोड स्थित वार्ड क्र. 7 में सर्वे क्रमांक 103/2 मिन 1 रकबा 2700 वर्गफीट ट्रस्ट की भूमि पर बनी भवन क्रमांक 231 प्रताप धर्मशाला और शहर के सब्जी मण्डी के वार्ड क्रमांक 14 में स्थित भवन क्रमांक 120 का भूमि स्वामी दस्तावेजों के अनुसार स्व. रामप्रताप स्वर्णकार ही थे। इसी का फायदा उठाते हुए स्व. रामप्रताप स्वर्णकार की मृत्यु के पश्चात सब्जी मण्डी स्थित भवन की रजिस्ट्री और नक्शे को फर्जी तरीके से तहसीलदार कार्यालय में पेश कर संबंधित विभाग के अधिकारियों से साठगांठ कर ट्रस्ट की भूमि का फर्जी नामातंरण करवा लिया गया। इतना बड़ा गड़बड़झाला होने के बावजूद न तो प्रशासनिक अधिकारियों ने इसका विरोध किया और न ही संबंधित विभाग ने कोई कार्रवाई की। यही वजह है कि नियम विरुद्ध होने के बावजूद ट्रस्ट की भूमि को भू-स्वामी बना दिया गया।
अलग-अलग हैं दोनों सम्पत्तियों के दस्तावेज
सब्जी मण्डी में बने स्व. रामप्रताप स्वर्णकार के निजी भवन और पाली रोड पर ट्रस्ट की भूमि पर बनी प्रताप धर्मशाला के दस्तावेज पूरी तरह से अलग है, लेकिन राजस्व विभाग के अधिकारियों ने आंखें मूंदकर निजी भवन के दस्तावेजों के आधार पर ही ट्रस्ट की भूमि को नियम विरुद्ध नामांतरित कर दिया जिससे साफ जाहिर है नियम विरुद्ध हुए इस कारनामें में राजस्व विभाग के अधिकारियों का भी बराबर का योगदान है।
...कहां गई शेष भूमि
शहर के पाली रोड स्थित ट्रस्ट की भूमि पर बनी प्रताप धर्मशाला में कई गड़बडिय़ां की गई हैं। उक्त भूमि के नामांतरण के लिए अलग-अलग विभागों में जो नक्शे पेश किए गए हैैं उनमें भूमि का अगल-अलग रकबा दर्शाया गया है।
राजस्व विभाग में जो नक्शा पेश किया गया है उसमें ट्रस्ट की भूमि का रकबा 45 वाय 90 दर्शाया गया है, जबकि न्यायालय में पेश किए गए नक्शे में उक्त भूमि का रकबा 55 वाय 60 पेश किया गया है। जबकि भूमि का नामांतरण महज 2700 वर्गफीट हुआ है, शेष भूमि कहां गई, इसका अभी तक कोई अता-पता नहीं है।

यह था पूरा मामला

शहर के पाली रोड स्थित प्रताप धर्मशाला को स्व. रामप्रताप पुत्र रामसुख स्वर्र्णकार ने 12 सितम्बर 1977 को पंजीयन कराकर ट्रस्ट की स्थापना कर एक पांच सदस्यीय ट्रस्ट की समिति गठित की। इस समिति में मुख्य ट्र्रस्टी स्व. रामप्रताप स्वर्णकार के साथ हनुमान प्रसाद स्वर्णकार, पूरणमल स्वर्णकार, शंकरलाल स्वर्णकार, सूरजमल स्वर्णकार व ओमप्रकाश स्वर्णकार शामिल थे लेकिन 13 फरवरी 1980 में मुख्य ट्रस्टी रामप्रताप स्वर्णकार ने रजिस्टार ऑफ पब्लिक ट्रस्ट श्योपुर को एक आवेदन सौंपकर यह उल्लेख किया कि ट्रस्ट के सभी सदस्य ट्रस्ट के संरक्षण व संचालन में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं, इसलिए उन्हें ट्रस्ट समिति से हटाकर नवीन सदस्यों के रूप में भंवरीबाई पत्नी रामप्रताप, शांतिबाई पुत्री रामप्रताप व धन्नालाल मित्तल, प्रहलाददास वैश्य को ट्रस्ट समिति का सदस्य बनाया जाए। साथ ही उन्होंने आवेदन में यह भी उल्लेख किया कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी पत्नी या पुत्री को मुख्य ट्रस्टी बनाकर ट्रस्ट के संचालन व संरक्षण की जिम्मेदारी सौंपी जाए।

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