जनमानस
देहदान महादान
वर्तमान में मृत मस्तिष्क वालों के अंगों का दान उनके परिजन करते आ रहे हैं। यदि इसका विस्तार ऐसे अशक्त वृद्ध जिनका शरीर व अंगों पर नियंत्रण नहीं रहा, उपेक्षित-निराश्रित अर्थहीन दु:खमय जीवन का शांतिपूर्ण समापन प्रत्यारोपित अंगों के साथ दूसरों के शरीर में जीवित रह चिकित्सा विज्ञान के लिए देहदान करना चाहें तो इस महादान संकल्प का स्वागत कर विचार किया जाना चाहिए। संभवत: इस प्रकार की मृत्यु (मुक्ति) को आनन्दोत्सव के साथ स्वीकारने वालों की संख्या कम नहीं होंगी। दधीचि के देश भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में मानव कल्याण के लिए बलिदान-कुर्बानी की लंबी परम्परा है। यदि स्वस्थ व्यक्ति नियमित रक्तदान, अंगदान, मरणोपरान्त नेत्र व देहदान करे तो मृत्युदर में कमी, अंधत्व निवारण व नूतन शोधकार्य किए जा सकते हैं। इस विचार के लोग भी कम नहीं होंगे कि बहुत जी लिए, अब नया कुछ किया जाए। यह आत्मबलिदान है, मुआवजे व भयादोहन के लिए की जा रही कथित आत्महत्या नहीं।
राधेश्याम ताम्रकर