जादूगर बनने की चाहत ने मासूम को खड़ा किया अपराध की चौखट पर
झॉसी। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि पुलिस गिरफ्त में खड़े अनिल का सपना है कि वह बड़ा जादूगर बने। इसके लिए उसे पैसों की खास जरूरत थी, मगर उसने पैसा कमाने का जो रास्ता चुना, वह उसे अपराध के दलदल की ओर इस तरह ले गया कि उसे भविष्य में शायद ही समाज की मुख्यधारा से जुडऩे का दोबारा मौका मिल सके।
ज्ञात हो कि मई 2015 को सीपरी थाना क्षेत्रांतर्गत एक संभ्रांत परिवार का दस वर्षीय पुत्र कुक्की अचानक लापता हो गया था। उसकी तलाश की गई, मगर सफलता नहीं मिली। पुलिस और परिजन दोनों ही उसे तलाशने में असफल साबित हुए। पिछले दिनों एक समाचार पत्र में कुक्की को तलाश कर लाने वाले को परिजनों द्वारा 2 लाख 51 हजार रुपये का पुरस्कार देने संबंधी विज्ञापन प्रकाशित कराया गया था। इस विज्ञापन को अनिल श्रीवास ने पढ़ा और उसके मासूम दिमाग ने पैसा जल्द कमाने और अपना सपना साकार करने के लिए एक शातिर प्लान बना लिया। उसने एक सिमकार्ड खरीदा और उस सिमकार्ड से महेंद्र बनकर कुक्की के परिजनों से संपर्क साधा। उसका उद्देश्य कुक्की के परिजनों को धमका कर कुक्की देने के बदले दस लाख रुपये फिरौती बसूलना था।
कप्तान ने बताया कि अनिल की योजना के अनुसार दिसम्बर माह में कुक्की के परिजनों को फोन किया और बताया कि वह उनके लड़के को तलाश कर देगा, बदले में उसे दस लाख रुपये चाहिए। इसके बाद उसने कुछ दिनों उपरांत फिर फोन किया और कुक्की के परिजनों को धमकाया कि उनका लडका पिछले सात माह से उसके पास बंधक है। यदि रुपये नहीं दिए और पुलिस के पास गए तो कुक्की के अंग-अंग काटकर फेंक दिए जाएंगे। इस धमकी से परिजन सहम गए और परमजीत सिंह ने तत्काल पुलिस से संपर्क किया। पुलिस ने अपना मायाजाल बिछा दिया और ट्रेकिंग शुरू कर दी। जैसे ही अनिल के द्धारा कुक्की के परिजनों से फोन द्वारा संपर्क किया और परिजनों को दस लाख रुपये लेकर बंगरा के बाहर बने रक्षक बाबा के स्थान के समीप बनी झोपड़ी के पास पैसों को लाल रंग के कपड़े से बंधी झाडिय़ों के नीचे छुपाकर रख दें। इतना ही नहीं उसके शतिर दिमाग ने यह भी कहा कि नोट 500 व 1000 के होना चाहिए। उसके बाद अनिल ने बताया कि पैसा मिलने पर उनका लडका कुक्की झांसी में प्रमोद पेट्रोल पंप के पास मिलेगा। इसी कॉल के दौरान पुलिस द्धारा अनिल का फोन ट्रेस कर लिया गया और उसके बताये अनुसार ही पुलिस ने परिजनों के साथ मिलकर बैग रखने की रूपरेखा तैयार कर दी। जैसे ही बैग रखा गया और अनिल बैग उठाने आया तो कुछ दूरी पर घात लगाये बैठी पुलिस ने अनिल को अपने शिकंजे में ले लिया। और तब सब की आंखें खुलीं की खुलीं रह गईं कि इतनी बड़ी योजना को अंजाम देने वाला वास्तव में क्या ये मासूम था। हाईस्कूल के लगभग 16 वर्षीय छात्र अनिल श्रीवास ने बताया कि उसके पिता गोगी लाल एक साधारण किसान व दादा श्रीपत श्रीवास बंगरा गांव के कोटेदार है। वह एक बड़ा जादूगर बनना चाहता था जिसके लिए एक बड़ी रकम की आवश्यकता थी। जिसके खातिर उसने अखवार में निकले विज्ञापन के जरिये यह योजना तैयार की। अनिल ने बातचीत के दौरान यह भी बताया कि यह सपना भी उसके मन में तब आया जब उसने झॉसी में चल रहे ओ पी शर्मा के जादू के बारे में गहराई से पढ़ा, और खुद एक बड़े जादूगर बनने का सपना मन में ठान लिया। जादूगर बनने के लिए उसने बंगाल व जर्मनी जैसी बड़ी यात्रा का मन बना लिया था। लेकिन पैसे की समस्या के चलते वह अपना सपना पूरा नहीं कर सकता था। इसीलिए उसने इस प्रकार की योजना को अंजाम दिया।