जानें: यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून और मोदी सरकार के अध्यादेश में मुख्य अंतर
नई दिल्ली: सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के आंदोलन और विपक्षी पार्टियों के विरोध के बीच आज लोकसभा में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पेश हो गया है. आपको बताते हैं कि यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण कानूनऔर मोदी के भूमि अध्यादेश में क्या अंतर है और लोग क्यों इसका विरोध कर रहे हैं.
यूपीए सरकार का भूमि अधिग्रहण कानून
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2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने संसद ने भूमि अधिग्रहण बिल पास किया था. जिससे किसानों के हित में कई निर्णय लिए गये थे. भारत में 2013 क़ानून के पास होने तक भूमि अधिग्रहण का काम मुख्यत: 1894 में बने क़ानून के दायरे में होता था. ये जबरन ज़मीन लिए जाने की स्थिति को रोकने में मददगार था.
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गांव की जमीन अधिग्रहित करनी है तो गांव के 70 प्रतिशत किसानों की सहमति जरूरी थी.
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5 वर्ष तक इस्तेमाल नहीं करने पर भूमि वापसी का प्रावधान-अधिग्रहित भूमि पर अगर पांच साल में डेवलेपमेंट नहीं हुआ तो वही भूमि फिर से किसानों को वापस मिलने की भी व्यवस्था भी की गई थी.
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सिर्फ बंजर भूमि का का ही अधिग्रहण- सिंचाई हेतु उपयोग होने वाली भूमि अधिग्रहित नहीं करने की व्यवस्था की गई थी. साथ ही साथ अधिग्रहित भूमि के बदले में किसानों के पुनर्व्यवस्था का भी उचित प्रबंध किया गया था.
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अधिग्रहण के खिलाफ किसान कोर्ट जा सकते थे- 2013 के कानून में यह व्यवस्था की गई थी कि अगर किसी ज़मीन के अधिग्रहण को कागज़ों पर 5 साल हो गए हैं, सरकार के पास जमीन का कब्जा नहीं है और मुआवज़ा नहीं दिया गया, तो मूल मालिक ज़मीन को वापस मांग सकता है.
मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण अध्यादेश
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अध्यादेश 2014 में बनाया गया- नौ महिने पहले देश की सत्ता में आयी सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया और 2013 के कानून की कई व्यवस्था को बदलते हुए किसान विरोधी निर्णय लिया है.
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किसानों की सहमति जरूरी नहीं. नए कानून में इसे ख़त्म कर दिया गया है.
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भूमि वापसी का कोई प्रावधान नहीं- एक बार सरकार ने जमीन लेने की घोषणा कर दी और उसने उस पर कोई काम शुरू हो या नहीं यह जमीन सरकार की हो जाएगी.
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उपजाऊ एवं सिंचित भूमि का भी अधिग्रहण- यूपीए सरकार में यह गुंजाइश थी कि सरकार खेती योग्य जमीन नहीं ले सकती लेकिन मोदी सरकार के अध्यादेश के मुताबिक सरकार खेती लायक और उपजाऊ जमीन भी ले सकती है.
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अधिग्रहण के खिलाफ किसान कोर्ट नहीं जा सकते हैं- अगर सरकार आपकी जमीन ले लेती है तो आप इसके खिलाफ किसी भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का हक भी नहीं रखते. मतलब कि आप की अदालत में भी कोई सुनवाई नहीं होगी