जनमानस
सिर्फ अंग्रेज गये हैं अंग्रेजी नहीं
स्वदेश सम्पादकीय (27 अपे्रल, 2015) 'इण्डिया नहीं भारत कहने में होगा गर्व' पढ़कर ऐसा लगा जैसे हमें आधी आजादी ही मिली है, क्योंकि देश से सिर्फ अंग्रेज गये हैं, अंग्रेजी नहीं। मुद्दा केवल 'भारत' और 'इण्डिया' का नहीं है बल्कि मूल समस्या अंग्रेजी को लेकर है। कुछ ज्वलंत प्रश्न जैसे - हिन्दुस्तान के कितने न्यायालयों में हिन्दी अथवा प्रादेशिक भाषाओं में कार्यवाही हो रही है? कितने राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों एवं अन्य प्रभावशाली व्यक्तियों के बच्चे हिन्दी माध्यम स्कूलों में पढ़ रहे हैं? कितने छात्र देश की प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी माध्यम के साथ चयनित हो रहे हैं? शहरों में स्थित कितने स्कूल सिर्फ हिन्दी माध्यम में ही शिक्षा दे रहे हैं? कितने डॉक्टर दवाइयों का पर्चा हिन्दी में लिख रहे हैं? - आदि ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं, जिनके उत्तर संतोषजनक नहीं हैं। इन स्थितियों से हम सभी वाकिफ हैं। लेकिन किसी की भी अंग्रेजी से दुश्मनी मोल लेने की हिम्मत नहीं हो रही है। इसलिए सभी एक ही दिशा में भेड़-चाल की तरह चले जा रहे हैं। कितनी बड़ी विडम्बना है कि हिन्दुस्तान में बच्चे के यह कहने पर कि वह 'हिन्दी' में कमजोर है, अभिभावक शर्म नहीं गर्व महसूस कर रहे हैं। ऐसे अभिभावक 'इण्डिया' को 'भारत' कहने में गर्व कैसे महसूस करेंगे?
हालात यह हैं कि पूरा समाज ही अंग्रेजीमय हो गया है, सिर्फ 'अंग्रेजी' न जानना ही पिछड़ापन नहीं है, बल्कि 'हिन्दी' जानना भी पिछड़ेपन की निशानी माना जा रहा है। अंग्रेजी ने हमारे आत्म-सम्मान को जितनी ठेस पहुंचाई है, उतनी तो शायद अंग्रेजों ने भी न पहुंचाई हो। अंग्रेजी जानना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन अंग्रेजी के प्रदर्शन से अंग्रेजी न जानने वालों को अपमानित करने का प्रयास करना किसी भी रूप में क्षम्य नहीं होना चाहिए, कम से कम हिन्दुस्तान में तो नहीं। ऐसे तथाकथित प्रदर्शनकारियों को चिन्हित कर उनसे सिर्फ इतना पूछा जाना चाहिए कि अभी तक समाज के लिये अथवा दूसरों के लिये उन्होंने क्या किया है? ऐसे प्रदर्शनकारियों का पूरा जीवन सिर्फ अपने आपको श्रेष्ठ प्रदर्शित करने में ही व्यतीत होता है। ऐसा भी नहीं है कि हर अंग्रेजी जानने वाला व्यक्ति इसी तरह का हो, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है, जो अंग्रेजी को ढाल बनाकर धड़ल्ले से अपनी दुकान चला रहे हैं एवं हिन्दुस्तान की भोली-भाली जनता को बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं।
प्रो. एस.के.सिंह