जनमानस
बच्चों पर काम का बोझ
यह गंभीर चिंतन का विषय है कि बाल श्रम कानून में संशोधन कर सरकार ने 14 वर्ष की आयु के बच्चों को स्कूल के समय के बाद पारिवारिक धंधे या अन्य कामों में सहयोग दे सकते है। अभी तक छोटे बच्चे जहां काम करते दिखाई देते थे, वहां श्रम विभाग कार्रवाई कर सकता था। कार्रवाई की लीपापोती भी होती रही। बाल श्रम कानून के बाद भी कई गरीब बच्चे होटल, ठेलों पर काम करते दिखाई देंगे। कई बच्चे सुबह-दोपहर के समाचार-पत्र चिल्ला-चिल्लाकर बेचते दिखाई देंगे। हम वास्तविकता को सामने रखकर विचार करे तो बाल श्रम कानून का क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। केवल कानून की किताब में कानून दर्ज होने से काम नहीं चलेगा। कानून की भीड़ को कम कर उपयोगी कानूनों का कड़ाई से पालन करवाना, सरकारी एजेंसियों की जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि वे अनावश्यक कानूनों को समाप्त करेंगे। इस वास्तविकता को भी ध्यान में रखना होगा कि भारत में गरीबी एक अभिशाप है। कच्ची उम्र में ही गरीब बच्चों को काम में लगा दिया जाता है। गरीबी की आग कितनी भयानक होती है इसका आभास गरीब को ही होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कच्ची उम्र में अपने पिता के ठेले पर रेल्वे स्टेशन पर चाय बेची है। उस समय भी बाल श्रम कानून प्रभावी था। जो कानून लागू नहीं हो सके, उसे कचरे की टोकरी में फेंक देना चाहिए।
अभिषेक गुप्ता