भारत ने संयुक्त राष्ट्र में उठाया आतंकवाद का मुद्दा

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में उठाया आतंकवाद का मुद्दा
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संयुक्त राष्ट्र | भारत ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि आतंकवाद एक ऐसा बड़ा खतरा है, जो विश्व को ठीक वैसे ही जनसंहार के जरिए निगल सकता है, जैसा कि दोनों विश्वयुद्धों में देखने को मिला था।
इसके साथ ही भारत ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद को हराने के प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी उप प्रतिनिधि भगवंत बिश्नोई ने कहा कि आज आतंकवाद मानवता के समक्ष मौजूद सबसे बड़े खतरों में से एक के रूप में उभरा है। आतंकवाद एक वैश्विक घटना है और इसे वैश्विक कार्रवाई से ही हराया जा सकता है। हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारे प्रयासों में कोई कमी न रहे।
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति की स्मति में संयुक्त राष्ट्र महासभा में आयोजित एक सत्र में शामिल होते हुए बिश्नोई ने कहा कि आतंकवाद की पहुंच के बढ़ने का खतरा है और यह दुनिया को ठीक वैसे ही जनसंहार के जरिए निगल सकता है, जैसा कि हमने दोनों विश्वयुद्धों के दौरान देखा। उन्होंने कहा कि दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के 70 साल बाद तक की गई प्रगति के बावजूद युद्ध पूरी तरह समाप्त नहीं हो सके हैं।
सोलहवीं सदी में संघर्षों में मरने वालों की संख्या 16 लाख से 20वीं सदी में यह संख्या लगभग 11 करोड़ हो जाने के आकलन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि युद्ध और सशस्त्र संघर्षों की घटनाओं में समय के साथ कमी आई हो सकती है, लेकिन लोगों पर इसके वास्तविक असर की व्यापकता बढ़ी है।
भारतीय राजनयिक ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को वैश्विक शासन से जुड़े उन संस्थानों की सेहत का भी ख्याल रखना चाहिए, जिनकी स्थापना दूसरे विश्वयुद्ध की पष्ठभूमि में की गई थी। यह युद्ध मानव इतिहास में सबसे ज्यादा विनाशकारी और तबाही वाला वैश्विक संघर्ष था।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भारत के योगदान को रेखांकित करते हुए बिश्नोई ने कहा कि भारतीय सेना में जवानों की संख्या दो लाख से बढ़कर 25 लाख तक पहुंच चुकी है, जो इतिहास का सबसे बड़ा स्वयंसेवी बल है। दूसरे विश्वयुद्ध में भारतीय सेना ने लगभग 87 हजार सैनिक गंवाए थे और हजारों घायल हुए थे।
बिश्नोई ने कहा कि सदियों से भारत में बुराई पर अच्छाई की जीत के दर्शन की परंपरा रही है जिसने योद्धाओं को राह दिखाई है। उन्होंने कहा कि यह इस संदर्भ के साथ है कि अहिंसा के प्रचारक महात्मा गांधी ने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ हमारे तत्कालीन संघर्ष के बावजूद दो विश्वयुद्धों में भारत की भागीदारी का समर्थन किया था।

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