दाहिया चूस रहे हैं गरीबों का खून

दाहिया चूस रहे हैं गरीबों का खून

निगम में फलफूल रहा है सूदखोरी का धंधा
अरविन्द माथुर

ग्वालियर। प्राचीनकाल से चली आ रही सूदखोरी और साहूकारी जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिए आज भले ही बड़ी-बड़ी बातें की जाती हों लेकिन निर्धन और कमजोर तबके के लोग आज भी इस कुरीति का शिकार होकर सूदखोरों के चंगुल में फंसे हुए हैं।
एक ओर जहां साहूकार इन गरीबों का खून चूसने में लगे हैं वहीं कुछ संस्थाओं और सरकारी महकमों में सूदखोरी जैसी कुप्रथा फलफूल रही है। सूत्र बताते हैं कि नगर निगम में सक्रिय इन सूदखोरों को कर्जदार 'दाहियाÓ के नाम से सम्बोधित करते हैं। वर्तमान में लगभग 1200 से अधिक सफाईकर्मी कलेक्टर रेट पर काम कर रहे हैं जिनमें से अधिकांश इनके चंगुल में हैं।
ऐसे फसाते हैं जरूरतमंद को
बेरोजगारी के इस दौर में जबकि व्यक्ति रोजगार पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है, इसी का फायदा उठाकर नगर निगम में सूदखोरी का धंधा चला रहे ये लोग ऐसे व्यक्तियों को अपने जाल में फसा लेते हैं। सूत्र बताते हैं पहले से निगम में अपना सिक्का जमाए बैठे इन सूदखोरों के पास जब रोजगार के लिए कोई गरीब या जरूरतमंद पहुंचता है तो ये लोग पहले तो उसे टालने का बहाना करते हैं और फिर कहते हैं कि हम कोशिश करते हैं लेकिन इसके लिए लगभग 30-40 हजार रुपए देने पड़ेंगे। उस व्यक्ति द्वारा जब रुपयों का इंतजाम करने में अपनी गरीबी और मजबूरी का हवाला दिया जाता है और इसी के साथ उसकी बदकिस्मती का सिलसिला शुरू हो जाता है। इसके बाद सूदखोर उसे झांसा देकर स्वयं उसके लिए पैसों की व्यवस्था करने का झांसा देकर स्टांप पर उसके हस्ताक्षर करा लेता है। इसके साथ ही उसकी नौकरी पक्की हो जाती है और उसके वेतन के लिए खाता भी बैंक में खुलवा दिया जाता है। वहीं गिरवी के रूप में उसकी पासबुक और एटीएम कार्ड सूदखोर अपने पास ही रख लेता है।
पीढ़ी दर पीढ़ी बने रहते हैं कर्जदार
सूत्रों के अनुसार निगम में वर्षों से चल रही इस कुप्रथा में एक बार सूदखोर (दाहिया) के चक्कर में फसे ये लोग पूरी जिन्दगी उनके गुलाम बने रहते हैं। बताया जाता है कि इस दौरान जब भी नौकरी पर लगाए गए व्यक्ति को पैसे की जरूरत होती है तो वह सूदखोर के पास पहुंच जाते हैं और वह उन्हें हजार-पांच सौ रुपए देकर उसका काम चला देता है। उधर उसके द्वारा नौकरी के नाम पर लिए गए रुपए पर लगातार ब्याज बढ़ता जाता है जबकि इसी ब्याज और बीच में लिए गए पैसे के एवज में सूदखोर उनके एटीएम का उपयोग कर उनका वेतन स्वयं निकालता रहता है। उधर इनके फंदे में फसे ये व्यक्ति अपने बच्चों को भी रोजगार पर लगाने के लिए इन्हीं के पास ले पहुंचते हैं जिसके चलते वे भी इस शिकंजे में फंस जाते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी यह सिलसिला चलता रहता है। वहीं कई बार कर्ज में फंसा व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेता है। ऐसे मामले कई बार सामने आए हैं। यूं तो निगम में कई लोग सूदखोरी का धंधा चला रहे हैं लेकिन इन सूदखोरों के चंगुल में अधिकतर बाल्मीकि समाज के लोग ही फंसते हैं और इन्हें ठगने वाले भी अधिकांश इसी समाज के होते हैं।
दाहिया पर भी दाहिया
सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता फिल्मी स्टाइल में यहां दाहिया के ऊपर भी दाहिया (सूदखोर)होता है। जो अपने नीचे वाले सूदखोर के माध्यम से यह दो नम्बरी व्यापार चलाता है। इतना ही नहीं निगम यदि इस धंधे में नया सूदखोर आ जाता है तो पुराना उसे दबाने के लिए सभी हथकण्डे अपनाता है और फिल्मों की तरह गैंगवार शुरू हो जाती है। परिणाम छोटे- मोटे विवादों से लेकर हत्या तक पहुंच जाता है।

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