जनमानस
आक्रामक हिन्दुत्व गढऩे का निरर्थक आरोप
भारतीय संस्कृति और देवी देवताओं के बारे में अभद्र टिप्पणियों को लेकर अमरीकी लेखिका वेंडी डोनिगर द्वारा लिखी गयी पुस्तक 'द हिंदूज- एन आल्टरनेटिव हिस्ट्रीÓ की तर्ज पर हमारे अपने भारतीय लेखक अक्षय मुकुल की शोध पुस्तक 'गीताप्रेस एंड मेकिंग ऑफ हिन्दू इंडियाÓ प्रकाश में आयी जिसे गुहा और अरुंधती रॉय सरीखे कथित बुद्धजीवियों ने बहुत सराहा है।बड़ा आश्चर्य होता है कि अपने ठोस सिद्धान्तों पर अविचल-अविरल भाव से लोकोपासना को समर्पित गीताप्रेस की भी आलोचना हो सकती है।अक्षय मुकुल ने अपनी किताब में लिखा है कि गीताप्रेस का आक्रामक हिंदुत्व को गढऩे में अहम रोल रहा है। मुकुल का निष्कर्ष है कि इस प्रेस के मुख्य प्रकाशन 'कल्याणÓ ने हिन्दू कोड बिल, गौरक्षा और ऐसे ही दूसरे मुद्दों पर जबरदस्त प्रोपेगैंडा किया।जबकि गीताप्रेस की हकीकत यह है कि अभी-अभी गुजरात के एक भक्त द्वारा दिया जाने वाला एक करोड़ का चेक दान उसने ठुकरा दिया है, किसी भी प्रकार का चंदा और हस्तक्षेप गीता प्रेस को कदापि स्वीकार नहीं।यही नहीं गीता प्रेस का आधार जयदयालगोयंदका और हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे ऐसे भक्त जीवों पर टिका है जिन्होंने वेद, ग्रंथ, पुराण, रामायण, गीता को अपनी आत्मा में उतारकर जीवंत किया था। घोर व्यवसाय, आतंक, कट्टरता से दूर गीता प्रेस विश्व की ऐसी अद्वितीय प्रेस है जहाँ मानवता हितार्थ प्रकाशन की पवित्र गंगा बहती है। आक्रामक हिंदुत्व का निरर्थक आरोप न सिर्फ घृणित कार्य है बल्कि गीता प्रेस की आलोचना करके मुकुल जैसे कथित बुद्धिजीवियों ने इसका मान और बढ़ाया है। भगवा आतंकवाद की टिप्पणी में भी कथित सेक्युलरवाद और वामपंथियों संग मुस्लिम तुष्टिकरण में कांग्रेस का षड्यन्त्र सबके सामने होता है। देश ही नहीं पूरे विश्व के लिए मानवता की स्थापना में हिन्दू धर्म ही एकमात्र संबल सिद्ध हो रहा हो तब हिन्दू धर्म के खिलाफ घोर विषवमन का षडय़ंत्र,आतंकी संगठनों की हिंसा से कतई कमतर नहीं ठहराया जा सकता।गीताप्रेस ने हिन्दूधर्म की शान्ति समरसता सत्य न्याय में सादगीपूर्ण जिंदगी के प्रचार-प्रसार की जो भक्तिमय व्याख्या स्थापित की है उसे फेल करना नामुमकिन है।
हरिओम जोशी